Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१॥ ॥२॥ SHRUTSAGAR August-2017 इम कही कलश ढाली, पूजा करी, आरती-मंगल दीवो करी, लूण-पाणी उतारी, स्नात्रियाओने खमासमण नव-नव देवरावीये। पछी हाथ जोडी, उभा रही प्रभु साहमा भावना भावीये पूजाना भणावनार राग रंग रीझे तान बाजा बजावते ॥ छेहली ढाल || हर्षनी भावना भावे तिहां प्रथम दुहा कहीये । ते दुहा लिखीये छे | ॥हा॥ चरण जानु कर अंस बे, सिर' भाल ग्रीव वक्ष'; नाभि इम नव अंगनी, पूजा कही प्रत्यक्ष आदि पूजा ए आदिथी, उपनी इक इके(क) अंग; तिम वरणवी गुण प्रगट करी, जांण मतिने जंग ॥ ढाल ११मी ॥ मारे दीवाली थइ आज जिनमुख जोवाने- ए देशी॥ पूजो पूजो रे प्रभु नव अंग प्रेमे पूजो रे; ए सरिखो अटल अभंग देव न दूजो रे; कल्पांतकाल-प्रलयने काले, सप्त हाथ गिरि राख्यो रे; एहवा अटल ए आदि जिणेसर, देव थूणीने दाख्यो ॥१॥ प्रेमे० जे जिनराजने तीन जगतजन, भाव भगति मन भाया रे; सास्वत ठांमे ठवि जिन डाढा, वज्री ढोक धराया ॥२॥ प्रेमे० कोसेराम कहे छे एहना, पग धोइ सहु पीवे छे रे; प्रभु आधारे जगत ए आखो, आलंबने जीवे छे ॥३॥ प्रेमे० धरती कागले स्याहि समुद्रे, जो लिखे प्रभु-गुण धाता' रे; तो पिण पार न कोई पामे, दान अभयना दाता ॥४॥ प्रेमे० नवपद प्रथम प्रथम नव पूजा, नवांक नव खंड भाया रे; नव निधि वली कमल नव काया, नव गोपुर निपजाया ॥५॥ प्रेमे० नाभिनंदन प्रभुनी पूजा, नव अंगी ए कहीये रे; नवरात्र्यो नव ओली दिन धुर, नव आंबिल निरवहीये ॥६॥ प्रेमे० पूजा नवांगी रचो प्रभुनी, शुदि आठिमे भले भावे रे; विध विधनां वाजा वगडावी, प्रथम स्नात्र भणावे ॥७॥ प्रेमे० रोग उपद्रव रौरव नावे, जिहां प्रभु ऊत्सव थावेरे; घर(?) रज रहित देव गुरु भक्ति, पूरण लिखमी आवे ॥८॥ प्रेमे० 1. ब्रह्मा. For Private and Personal Use Only

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