Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
अगस्त-२०१७ ॥ ढाल १०मी॥ वन्नमां वन्नमां वन्नमां रे, वाल्हो वसे छे वृंदावन्नमां-ए देशी॥
कीजीये कीजीये कीजीये रे नवमि नाभिनी पूजा कीजीये (रे) लीजीये लीजीये लीजीये रे नवमि नाभिनी पूजा[थी फल] लीजीये (टेक) नाभिए ब्रह्मा विष्णु महेसर, नाभिए नारिथी रीझीये रे; नवमि० नाभि-विचार ते निश्चय जाणो, नाभिथी नवरस बूझीये
॥१॥ नवमि० नाडी चोवीस छे नाभि ठेकांणे, त्रीछी च्यार भणिजीये रे; नवमि० दस ऊरध वहे नाडी-नलिका, दस वलि अध जाणिजीये रे ॥२॥ नवमि० नाभिअस्थांन कुंडली आकारे, नागिण रूप नाणिजीये रे; नवमि० तिहांथी हज्जार वहे झडिलाई', नल बिहुं नाक जाणिजीये रे ॥३॥ नवमि० प्रेरे पवन ते पींड सकलमे, कोइ विरला जाणिजीये रे; नवमि० अढी अढि घडी एक स्वास रहे सांसे, अरटनी रीति आणिजीये रे ॥४॥ नवमि० वामे ऐं(इं)डा चंद्रनी नाडी, मध्य सुखमा माणिजीये रे; नवमि० दक्षिणे पे(पिं)डा सूर्यनी नाडी, वडी ए त्रिण्य वदिजीये रे ॥५॥ नवमि० हर हेठे [ ने] ऊपरि भवांनी, शक्ति शंकर जे णिजिजीये रे; नवमि० ज्यारे नाभिए जीव त्यारे परम सुख, नाभि-पूज्या न मरिजीये रे ॥६॥ नवमि० डंटी पेटोचि(पेचोटी) मबारखि नाभि, धरणीथी रे थिर रीजीये रे; नवमि० नाभिनंदनने डुंटी तिलक करो, तो थिर ठामे ठरिजीये रे
॥७॥ नवमि० नाभि-मरगने मेले केसरथी, सूकड बरास भरिजीये रे; नवमि० नाभि पूजोने नाभिनंदन वधावो, नहि तो नाभि विचरिजीये रे ॥८॥ नवमि० नाभि-पूज्याथी कमलाकामी, पूरण सुख पामिजीये रे; नवमि० उदयसोम सूर लगि अलबेला, प्याला अमृतना पीजिये रे ॥९॥ नवमि० जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स। बुद्धस्स मुत्तस्स य वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहूस्स सुरपतैनपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम्
॥२॥
__(इम कही कलश ढालवो) ॐ ह्रीं श्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय] जलं चन्दनं अक्षतं फलं फूल धूपं दीपं नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥
॥१॥
1. (?), 2. (?), 3. (?).
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