Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 श्रुतसागर अगस्त-२०१७ मान विना भगवान कहीजे, मान विगर जग माने रे: दोष अढार रहित देव पांचमा, देवाधिदेव वखाने रे ॥३॥ चतुर० मान गुमाननु ठांम खभा छे, वलि खभे वीर्य अनंत रे; वीर्य अनंते मान नसाडवो, दीपक-तम दृष्टांते रे । ॥४॥ चतुर० दीवो तिहां अंधार न होवे, जो तम तो नहि दीवो रे; तिम बिहुं मान ते भेला न भले, नागर अंतक जेहवो रे ॥५॥ चतुर० अंतकमान ते नरकनुं आपक, छे निज निज मने मोटा रे; एक मानीने जग सहु माने, एक मानी जगि खोटा रे ॥६॥ चतुर० माने दुरजोधन चरमी(?) मू(र)ख, रावण मानथी रोल्यो रे; मानी बाहूबल मतवालो, माने मल्ल झझोल्यो' रे ॥७॥ चतुर० धुर-ध्येयी अन्य हेयी पूजो, प्रभुजीना अंस बे आछा रे; अंसने पूज्या अंस पूजाये, पुनरावरत न पाछा रे ॥८॥ चतुर० चित्तथी चेतन च्यार निवारी, प्रभु चिहुं अंगे पूजो रे; चिहुं कापो तो पंचमु थापो, स्युं भरमे भाइ मुंझो रे ॥९॥ चतुर० कनगरि अगरे कनकगिरि तोले, बल अनंत भुजमूले रे; तेणे भुजमूल ते पूजो प्रांणी, अरिहाने अनुकूले रे ॥१०॥ चतुर० प्रभु तन टोचे पूज्या परभवि, उदयसूर लगि उंचे रे गाले भाले भाव प्रमाणे, पकडे शिववहु पोहचे रे ॥११॥ चतुर० जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स। बुद्धस्स मुत्तस्स य वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहूस्स सुरपतैनपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम् ॥२॥ (इम कही कलश ढालवो) ॐ ह्रीँ श्री परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय] जलं चन्दनं अक्षतं फलं फूलं धूपं दीपं नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ।। ॥१॥ 1. हराव्यो, 2. अग्र, मुख्य, 3. (?), 4. मेरु. For Private and Personal Use Only

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