Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir August-2017 ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ ॥५॥ SHRUTSAGAR नवांगी पूजा ॥श्रीपार्श्वदेवाय नमः ॥ श्रीऋषभराजाय नमः॥ अथ नवांगीपूजा प्रारभ्यते ॥ श्रीसरस्वत्यै नमः॥ स्वस्ति श्री शंखेश्वरो, ऋषभ वडो महाराज; जनम-मरण-संसारजल, आदि उतरवा पाज एक आदेई आदि इक, अकलरूप अरिहंत; आदि ब्रह्मा आदिम कहे, सोइ विश्वंभर संत अल्ला अलख अलेस' ए, अगम अगोचर रूप; वृषभांकित प्रभु ऋषभ ए, शंकर तेम स्वरूप सोवन जिम जगि श्रेष्ठ छे, सोवन सरिखी काय; सोवन विण सोवन विषे, रहे घुरजटी जाय धनवंता ते धन दीये, अष्ट सिद्धि नव निद्धि: चक्रवर्तिना घर विषे, चौद रत्ननी ऋद्धि पुत्र भरत चक्री कर्यो, आप आदि भगवान; समरथ ए छे साहिबो, ऋषभ राजराजान जगत-उद्धार जिणेसरू, एह आदि नरपत्ति; प्रथम प्रभु ए पारगत, जांणो ए जगपत्ति शत्रंजय ए स्वामिजी, मक्के ए महाराय; आदि पुरुष ए आदिनो, जग सघलो जस गाय ए प्रभु पूज्या पामीये, संपदा सुख समग्र; ते प्रभु पूजा त्रिहुं विधे, अंग' भाव' ने अग्र उदय उंचपद ऊपमा, उत्तम सत्त्व उदार'; श्रीपरमेश्वर पूजता, पामे पांच ‘उ’कार प्रज्ञा', प्रभुताई वधे, पुण्य पापक्षय प्रीति'; परमेश्वरने पूजता, पांच ‘प’पा लहे नित्य ते माटे प्राणी तुम्हे, पूजो प्रभु धरी प्यार; प्रभु पूज्या सुख इह भवे, पामे परभवे पार ॥६॥ ||७|| ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ ॥११॥ ॥१२॥ 1. दयारहित, 2. शंकर. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36