Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 12 अगस्त-२०१७ सास्वत तीरथंकर सदा, पूजे देवविमान; सास्वत दोइ अट्ठाइमां, गिरिकूटे प्रभु गान ॥१३॥ ॥ढाल-१॥ अनिहां रे वाल्होजी वाये छे वंसली रे- ए देशी॥ अनिहां रे आसो चैत्र अट्ठाहिनमे रे, देव मलीने नंदीसरद्वीप, अरचंता अरिहंतने रे, भरी कलश प्रभुने समीप ॥१॥ न्हवण करे प्रभु वृंदने(?) रे, न्हवण करे नाभिनंदने रे, वाल्हो आदि युगादिनो ईस; तारण ए भवतीर छे रे, एह जोरावर जगदीस ॥२॥ न्हवण० अनिहां० जीवाभिगमथी जाणज्यो रे, मत आणज्यो मनमां जूठ; मारि उपद्रव सब मिटे रे, वलि उपशमे देवता दूठ ॥३॥ न्हवण० अनिहां० तिम तुम्हे करो निज थानिके रे, प्रभु-उत्सव पुण्यने काज; प्रभु पूज्या सुख पामीये रे, रमणी ऋद्धिने राज ॥४॥ न्हवण० अनिहां० आसो चैत्रनी आठिमे रे, उजलिये उज्जले भाव; सुचि धात्री करी जलछटा(वे) रे, करो पूजा ठाठ बणाव ॥५॥ न्हवण० अनिहां० त्रिण गढ रची तिणे थानिके रे, सोहावो सीहासनि स्वामि; दक्षण दीवो धूप डावी दिशे रे, मेलो आठ अरघ' अभिराम ॥६॥ न्हवण० अनिहां० फल जल वासने फूलडां रे, अक्षत नैवेद्य ए आठ; अष्ट मंगल रचो रूयडां रे, ठिक ठाम जोई करो ठाठ ॥७॥ न्हवण० अनिहां० आठ पूजा नव अंग छे रे, तेणे नव नव चीज मिलाय; नव अंगे प्रभु अरचीये रे, एह पूजा नवांग भणाय ॥८॥ न्हवण० अनिहां० आठ स्नात्रीया अति भला रे, न्हाइ धोइ न्हवरावे नाथ; ते अणिमादि आठे सिद्धिने रे, पामे ते कहुं कुण माथ; हेजे पकडो शिववहु-हाथ ।।८।। न्हवण० अनिहां० आसोने चैत्रनी ओलीये रे, नव आंबिल करीये नेम; नव अंग पूजा भणावीये रे, सिद्धचक्र पूजो धरी प्रेम ॥९॥ न्हवण० अनिहां० उर कमले नवपद जपो रे, नव नव परि पूजो नाथ; आगलि रूपानो आंबलो रे, ठवो प्रभु-पे(पय) साजन साथ ॥१०॥ न्हवण०अनिहां० प्रभु पूज्या थकी प्राणीया रे, देवपालादिक थया देव; उत्तम श्रीउदैसूर जे रे, सहु करज्यो प्रभुनी सेव ॥११॥ न्हवण० अनिहां० 1. दूष्ट, 2. चोक्खि/पवित्र, 3. प्रभु ऋषभने रे - पाठांतर, 4. पूजानी सामग्री, 5. (?), 6. (?). For Private and Personal Use Only

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