Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 श्रुतसागर अगस्त-२०१७ बाबत वाचको ध्यानमां ले. प्रभुना वचनातिशयनी वर्णना कवि हवे पछीनी सातमी कंठपूजानी ढाळमां करे छे. कवि कहे छे के जेम १४ राजलोकमां ग्रीवा स्थाने रहेला ग्रैवेयकना देवो जेम समान सुखवाळा होय छे, तेम समवसरणमां पण जीवो समान भावे रह्यां छे. अहीं समान भावनो अर्थ क्रोधादिथी रहितपणे रह्यां छे एम करवानो छे. वळी, बीजी पण कंठनी पूजा करतां गलग्रहनो रोग के मुखेथी दुर्गंध न आवे ते विगत आ ढालनी महत्त्वपूर्ण बाबत छे. ___आठमी हृदयनी पूजा- वर्णन करतां दूहामां कवि सौप्रथम प्रभुना हृदयनी निर्मळताने वर्णवे छे, ज्यारे त्यारपछीना पद्योमां ॐ ह्रीं श्रीं मंत्राक्षरना ध्याननी, श्रीवत्स अंगेनी तेमज बीजी पण घणी विगतो आलेखे छे. जो के आ ढाळमां पण पूर्वनी जेम घणां पद्योनो संबंध अमने अस्पष्ट होवाथी ते अंगे अमे कशुं लखी शक्या नथी. छेल्ली नाभिपूजानी ढाळ काव्यनी महत्त्वनी ढाळ छे. आ ढाळमां कविए नाभिस्थानमा रहेली २४ नाडीओनी, कुंडलिनी शक्तिनी(?), ईडा-पिंगळा-सुषुम्णा नाडी विगेरे यौगिक प्रक्रियानी विगतो आलेखी छे. आ विषयनो अमोने बोध न होवाथी अमे अहीं पण ते अंगे कशो विशेष परिचय लख्यो नथी. आ ज ढाळमां प्रान्तनी कडीओमां कविए नाभिनी केसर, सुखडादि चूर्णोथी अर्चना करवानी अने नाभिनंदनने वधाववानी वात गुंथी छे अने तेम न करतां नाभिमां एटले के निगोदमां फरी विचरवानी संसार भ्रमण करवानी कडक सजा पण फरमावी छे. ___ काव्यनी छेल्ली ढाळमां कविए प्रभुना अतुल बळनी तेमज प्रभुनां अखूट गुणग्रामनी सुंदर वर्णना करी छे. साथे नवांगी पूजाथी मळती नव खंडनी ऋद्धि, नव निधि आदि समृद्धिनी पण रजूआत छे. खास तो ढाळना बीजा पद्यमां ‘सात हाथ गिरि राख्यो' ए पदथी कवि शुं कहेवा मांगे छे, ते अमने समजायु नथी. प्रान्ते पूजा समापनना पद्योमां कविए पोतानी गुरु-परंपरा, संवत् तेमज ग्रंथरचना अंगेनी नोंध आपी काव्य पूर्ण कर्यु छे. प्रत परिचय प्रस्तुत कृतिनी मूळ हस्तप्रत खंभातनां अमरशाळा जैन ज्ञानमंदिरमा रहेली छे. तेना कुल ६ पत्रो छे. ते दरेक पत्रमा १३ थी १४ पंक्तिओ, पंक्तिमा ४५ थी ५० शब्दो छे खास तो संपादन माटे कृतिनी हस्तप्रत(Zerox) आपवा बदल पू. मुनि श्री अविचलेंद्रविजयजी म.सा.नो, ज्ञानमंदिरना व्यवस्थापकोनो, मनुदादानो तेमज प्रो. कीर्तिभाईनो खूब खूब आभार. For Private and Personal Use Only

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