Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 193
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सांभलता न धरस्यो लाजरे. क्रोधभाव न आणस्यो चित्त, पुत्र तेजस्विमें आदित्यरे. तुम रांकतणे घेर रत्न, रहस्ये नही करस्ये यत्नरे. दंपति मनमांहि चिंते, धार्यु छे वोहरावानुं निमित्तरे. संवत सत्तर (१६) छेताला वरखे, जन्म्यो ते पुत्र छ (छे ? ) हरषेरे. गुण निष्पन्न ते नाम निधान, देवचंद्र अभिधानरे. वरस या ते पुत्रने आठ, धारे ते विज्ञानना पाठरे. कवियण भाखी त्रीजी ढाळ, आगल वात रसालरे. दुहा. अनुक्रमे विहार करता थका, आव्या पाठक तत्र, राजसागर शिरोमणि, अर्भक प्रसव्यो यत्र. गुरु देखी हर्षित थया, वहुराव्यो,पुत्र रतन: धर्मलाभ गुरु तव दीये, करजो पुत्र जतन. २ For Private And Personal Use Only

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