Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 222
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकदिन वायुप्रकोपथी, वमनादिकनी व्याधि; अकस्मात उत्पन्न थइ, शरीरे थइ असमाधि. ७ शास्त्र मरण दोउ कयां, पंडित मरण छे जेहा बाल मरण तो दुसरो, उत्तम पंडित मृत्यु नेह. ८ तव शरीरनि क्षीक्षणा, (क्षीणता?) शिथिल थयां अंगोपांग; बुद्धि करीने जाणीइं, अनित्य पदारथरंग. ९ पुद्गळ तो अनित्यता, अनादिनो स्वभाव; मूरख तेपरि रंग धरे, पंडित धरे विभाव. निज शिष्योने तेडीने, दे शिक्षा हितकार; मुज अवस्था क्षीण छे, ए पुद्गल व्यवहार. ११ निंदडली धेरण हूइ रही ए देसी. शिष्य शिरोमणी जाणीइं, मनरूपजी हो वाचक गुणवंत; चतुर चाणाक्य शिरोमणि, गुरु उपर बहु भक्तिवंत, धन धन ए गुरु वंदीए. १ धन्य एहनी चतुराइने, गुरु बेठां हो श्रावक करे सेव; पदकज सेवे जेहना, आज्ञा माने हो नित नित मेव. २५० For Private And Personal Use Only

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