Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 221
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ल० १५ गुरु महाजने द्रव्य खरच्यो बहु, एह संबंध उदार. नवमी ढाळ सोहामणी, कवियण भाखी एह एक जीभे गुण वर्णतां, कहितां नावे छेह. ल० ला १६ गुरु दुहा. वाचक श्री देवचंद्रजी, देशना पीयूष समान; जीवद्रव्यना भेदस्युं, नय उपनय प्रधान. ग्रंथ भला हरिभद्रना, वाचक जसकृत जेह; गोमट सार दिगंबरी, वाचना करे हित नेह. मुलताने देवचंद्रजी, वली अन्य वीकानेर, चोमासां गुरु तिहां करी, ज्ञानतणी समसेर. नवाग्रंथ ज्हेने कर्या, टीका सहित तेह युक्त; देसनासार नयचक्र, शुभ ज्ञानसारनी भक्ति. ४ अष्टकटीका युक्तिथी, कर्मग्रंथ वली जेह; तेहनी टीका आदि देइ, ग्रंथ कर्या बहुनेह. ५ राजनगरे देवचंदजी, दोसीवाडामांहि; ... थोका थोक व्याख्यानमें, सांभळता उछाहिं. ६ For Private And Personal Use Only

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