Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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१७ जि०
१८ जि०
पांच थानिक परिग्रहर्नु, करीये तेहनो प्रमाण; ग्रंथी नही ते निग्रंथ कहीये, निद्रव्ये मुनि सुजाण. क्रोध मान माया लोभ जाणो, रागद्वेष कलह न कीजे; अभ्याख्यान पैशुन रति वजों, अरति परपरिवाद न लीजे. पापथानक अढारमुं भा, मिथ्यात्वशल्य नवि धरीये; सत्तरथी ए भारे कहीये, मिथ्यात्वे केम तरीये. मिथ्यात्वसल्य काढीने प्राणी, समकितमांहि भलीये; जिनवरभाषितवचन सदहीये, भवभवफेरा टलीए. नैगम संग्रह आदे देइसतनयनी भंगी; तेहनी रचना करता गुरुजी, अपवादने उत्संगी.
१९ जि.
२० जि.
२१ जि०
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