Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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२६
झुठ बोल्याथी वसुभूपतिनुं, सिंहासन भुइँ पडीयुं; काल करीने दुरगति पोहतो, झुठ वयण ते जडीयुं.
झुठु मिंटु लागे जनने, कडुयां फळ छे तेह; आगारी अणगारि मुखथी, झुठ न बोलस्यो रेह.
श्रीजु थानिक कहे जिनवरजी,
नाम अदत्तादान; अणदीधी वस्तुनी जयणा, धरवानो करो स्थान.
चोरी व्यसने दुरगति पामे, तेहनो कोइ न साखी; चोरद्रव्य खातां नृप जो जाणे,
जिम भोजनमां माखी.
तृण जाच्युं कल्पे साधुने, नवि ले अदत्तादान; चोरतणो वली संग न कीजे, इम कहे जिन वर्धमान.
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