Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 203
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४ देवचंद मनमे चिंतवे, हुं पामर मनमांहि, मूर्छा धरूं ते फोक सवि, सत्यप्रभुमारगबांहिं (मांहि ? ) ५ संवतसतरसत्यासीये, आव्या अमदावाद; लोक सहु तिहावांदवा, आव्या मन आल्हाद. ६ नागोरीसरा जिहां अछे, तिहां ठवीया मुनिराज; निर्लोभी निकपटता, सकल साधुशिरताज. साधुश्री देवचंदजी, स्यादवादनी युक्ति, जीवद्रव्यना भावने, देखाडे ते व्यक्ति. ते हवे देशना सांभळो, श्रावक श्राविका जेह, वाणी जळ आषाढसम, वरसे ध्वनि घनगेह. पाप स्थान अढार छे, ते मूको भविजन्न, जिनवरे भाष्यां जे अछे, ते सुणीये एक मन्न. १० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाळ. अळगी रहेनी. ए देशी. वीर जिणेसर मुखथी प्रकासे, पाप स्थान अढार; तेहथी दूर रहो भवि प्राणी, मुणीये आगार अणगार. जिनवर कहेजी, कहेजी. २ जिनवर कहेजी: For Private And Personal Use Only टेक. ९

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