Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स०१३
स०१४
स०१५
मनरुपजी रजोहरणथी, पत्र आपे गुरुजीने तत्ररे. ज्ञानविमळसूरि तव वांची, एह खडतरे मारी फांचीरे. सत्कुलगुरुनो एह छे शिष्य, जेहनी जगमांहि छे अभिख्यरे. शास्त्रमयार्दाये सहसनाम, साखयुक्त ते नाम सुठामरे. मौन रहीने पुछे ज्ञान, तुमे केहना शिष्य निधानरे. उपाध्याय राजसागरजीना शिष्य, मिठी वाणी जेहवी इक्षुरे. नम्रता गुण करी बोले ज्ञान, देवचंद्रने आप्या मानरे. तुम वाचकतो जैनना काजी, तुमे जैनना थंभ छो गाजीरे. आदि घर छे ते (त?) मारुं भव्य, तुमे पण किम न होये कव्यरे. इणिपरे परस्परे युक्तिं मिलीया, शेठ तेजसीना कारज फलीयारे.
स०१६
स०१७
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232