Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 214
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५ भंडारीजी लाहो लेता, ए गुरु सम नही दुजारे. विधियोगे ते राजनगर में, मृगी उपद्रव व्याप्योरे; गुरुने भंडारी सर्व व्यवहारी, अरज करी सीस नमाव्योरे. स्वामी उपद्रव राजनगर में, थयो छे सर्व दुःख कर्त्तारे; तुम बेठा अमे केहने कहीये, तुमे छो दुःखना हर्त्तारे. जैनमार्गना मंत्र यंत्रादिक, करीने खीला गाडयारे; मृगी उपद्रव नाठो दुरिं, लोकना दुःख नसाड्यारे. जिनशासननो उदय ते करता, दुःखम आरे देवचंदरे; प्रसंसा सघले शाशनकेरी, टाल्यो दुःखनो दंदरे, एहवे समे रणकुंजी आव्या, बहुलं सैन्य लेइनेरे; For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन० ३ धन० ४ धन० ५ धन० ६ धन० ७

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