Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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३०
माणिकलालजी जालिमी, ढुंढकनो मम पास,
तेहने गुरुए बुझव्यो, टाली मिथ्यात्वनीका (वा ? ) स. २ नौतन चैत्य करावीने, पडीमा थापी ता सिस, देवचंद उपदेशथी, ओछव हुया उलास. श्री शांतिनाथनी पोल में, भूमि हमें बिंब, सहसफणा आदे देइ, सहसकोड जिनबिंब. तेहनी प्रतिष्ठा तिहां करी, धन खरचाणां पूर, जैनधरम प्रकासीयो, दिन दिन चढते नूर.. संवत १७७९ सतर ओगणीस ( एग्न्याऐंशी ? ) मे चातुर्मास खंभात,
५
तिहांना भविने बुझवा, जेहना अवदात.
६
रसीयानी देशी.
श्री देवचंद्र मुनींद्र ते जैमनो, स्तंभ सदृश थयो सत्य सुज्ञानी; देशनामें श्री शत्रुंजयतीर्थनो, महिमा प्रकाशे नित्य.
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श्री सिद्धाचळ महिमा मोटको, श्री रुषभ जिणंदनी वाणी.
सु०
तीर्थ महिमा शत्रुंजयनो सुणो. १
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३
सु०

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