Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२५
पाप थानिक पहिल तुमे जाणो, जीवहिंसा नत्रि करीये; बेंद्री तेंन्द्री चोरिंद्री पंचेंद्री, वधमां मन नवी धरीये.
एकेंद्रियादिक अनंतकायादिक, तेहना करो पचखाण; एकेंद्रीय तो संसारिनी करणी, अनुमोदना नवि आण.
अणगारीने सर्वनी जयणा,
षटकायाना त्राता; कोइ जीवने दुःख नवि देवे,
उपजावे बहु साता. मरि कहेता दुख उपजे सहुने, मारे किम नाव होय; रुद्रध्याने नरकगति पायो, ब्रह्मदत्त चक्रवत्ति जोय.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
२ जि०
३ जि०
४ जि०
५ जि०
मृषावाद पाप थानिक वीजुं, जुटुं नवी बोलीजे;
वैर विखादें (विषवादे ) मृखा वचन बोले, पतीयारो किम कीजे.
४
६ जि०

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232