Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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१२ जि.
१३ जि.
पापस्थानक चोथु भवि जाणो, ब्रह्मचर्य मनमां धारो; रूपवंत रामा देखीने, मन नवि कीजे विकारो. विषयी नर रामाए राचे, ते दुःख पामे नरके लोह पुतली धखावे अंगने, आलिंगावे धरके. विषवल्ली सदृश छे ललना, तेहनो संग न कीजे; मनमां कपट चपट करे जनने, शुभ प्राणी किम रीझे. रावण मुज आदे देश भूपा, नारीथी विगुआणा; सीता सुदर्शन सोळ सतीना, जगमे जस गवाणा. स्त्रीसंगे नव लाख हणाइ, जीवतणी बहुराशि; ब्रह्मचर्य चोखं चित्त न धरे तो, पामे नरकनो वास.
१४ जि.
१५ जि०
१६ जि.
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