Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दहा सोरठा. दंपती श्री गुरुपास, करजोडी करे विनती, तुम उपर विश्वास, यथार्थ कहो श्रीस्वामिजी. १ सुपनाध्यायना ग्रंथ, काढ्या गुरुए तत्खिणे; सत्य बोले निग्रंथ, लाभानुलाभ ते जोइने..२ श्री गुरु शिर धुणावीयु, चमत्कृति थइ चित्त; सामान्य घर ए सुपन स्युं ? पण इहां एहवि थीति.३ हे देवाणुप्रिय! सांभलो, सुपनतणो जे अर्थ; शास्त्र अनुसारे हुं कहुं, नवि बोलु अमे व्यर्थ. ४ देशी-मनमोहनां जिनराया. तुम धरणीमे गजपतिदीठो, तेतो शास्त्रे को गरीठोरे, कुंवर थास्ये लाडकडो, हारे सुपनप्रभावे थास्येरे; कुंवर बास्ये लाडकडो, गजपर बेसीने दान; बलि अनमिष सेवे विधानरे. १ कुं० दोय कारण छे ए सुपने, देवे जो प्रभावे ए तंपनेरे. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232