Book Title: Shrimad Devchandraji Jivan charitra
Author(s): Manilal M Padrakar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आगळ हवे भवि सांभलोरे हो० धर्मकरणीनी वृद्धिरे.
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११ दे०
दूहा.
पाटणमें देवचंदजी, जैनागमनी वाणि; वांची भवीजन आगले, स्याद्वादयुक्तवखाण. श्रीमाली कुलसेहरो, नगरशेठ विख्यात; राय राणा जस आना करे, प्रमाण सर्वे वात. नामे तेजसी दोसीजी, धन समृद्धे पूर; श्रावक पूर्णिमगच्छनो, - जैनधरमनुं नूर. कोविदमें अग्रेसरी, श्री भावप्रभसूरि; पुस्तकनो संप्रदाय बहुल, - छात्र भण्या जिहां भूरि. ४ ते गुरुना उपदेशथी, भराव्यो सहस कूट; तेजसी दोसीने घरे, रुद्धि समृद्ध अखूट. ते सेठ तेजसी घरे, देवचंद्र मुनिराज; तव तिहां शेठ प्रत्ये कहे, हे देवाणुप्रियताज. सहसकूटना सहस जिन, तेहना जे अभिधान; गुरुमुखे तमे धार्या हस्ये के, हवे धारस्यो कान. ७ मीठे वयणे गुरु कहे, सांभळीयुं तव सेठ; स्वामी हुं जाणुं नहीं, चमत्कृति थइ द्रढ. ए हवे अवसरे तिहां हता, संवेगी शिरदार;
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