Book Title: Shravakachar
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Gokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur

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Page 253
________________ on श्री श्रावकाचार जी आलापं भोजनं गच्छं,श्रुतं सोकं च विभ्रम । अपने को शरीर आदि से रहित परम शुद्ध निर्विकार, निरंजन, ब्रह्मस्वरूप, सच्चिदानन्दघन परमात्म स्वरूप अनुभव करे। जैसे- नदी में स्नान करते हैं, गोता। मनोवय काय हिद सुद्ध, सामाई स्वात्मचिंतनं ॥४०७॥ लगाते हैं, वैसे ही अपने आत्मा के यथार्थ स्वरूप को ध्यान में लेकर बारम्बार गोता अन्वयार्थ-(सामायिक नृतं जेन) जोशाश्वत सामायिक करता है (सम संपूने लगावे उसी में मग्न रहे। सच्ची सख-शांति और मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय ७ सार्धयं) वह हमेशा परिपूर्ण समता भाव में रहने की साधना करता है (ऊधे आधे ध्यान सामायिक है। जिसको सर्व जगत की और अन्य कामों की चिंता छोड़कर मध्यंच) प्रात:, मध्यान्ह, सायंकाल अथवा ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक से (मन रोधो स्वात्म चिंतनं) मन का निरोध कर स्वात्मचिंतन करता है। सामायिक प्रतिमाधारी सामायिक संबंधी बत्तीस दोष नलगावे-१.अनादर से (आलापं भोजनं गच्छं) वार्तालाप में, भोजन में, गमन करने में (श्रुतं सोकंच सामायिक न करे। २. गर्व से सामायिक न करे। ३. मान बड़ाई के लिये सामायिक न विभ्रमं) श्रवणशोक और विभ्रम अर्थात् शंका संदेह रहित होकर (मनोवय काय हिदं करे। ४. दसरे जीवों को पीडा उपजाता हुआ सामायिक न करे। ५. हिलता हुआ सुद्ध) मन, वचन, काय और हृदय से शुद्धता पूर्वक (सामाई स्वात्म चिंतन) अपने सामायिक न करे।६.शरीर को टेढा रखता हुआ सामायिक न करे। ७. कछए की शुद्धात्म स्वरूप का चिंतवन करना सामायिक प्रतिमा है। तरह शरीर को संकोचता हआ सामायिक न करे। ८. सामायिक के समय मछली विशेषार्थ- सामायिक शिक्षाव्रत में बतला आये हैं कि राग-द्वेष रहित होकर की तरह ऊँचा-नीचा न हो। ९. मन में दुष्टता न रखे। १०. जैनमत की आम्नाय शुद्धात्म स्वरूप में उपयोग को स्थिर करना यथार्थ सामायिक है। इस सामायिक की के विरुद्ध सामायिक न करे। ११. भय युक्त होकर सामायिक न करे। १२. ग्लानि सिद्धि के लिये श्रावक अवस्था में बारह भावना, पंच परमेष्ठी का स्वरूप, आत्मा के सहित सामायिक न करे। १३. मन में ऋद्धि गौरव रखता हुआ सामायिक न करे। स्वभाव-विभाव का चिंतन एवं आत्म स्वरूप में उपयोग को स्थिर करने का अभ्यास १४.जाति-कुल का गर्व रखता हुआ सामायिक न करे।१५. चोर की तरह छिपता करना, पूर्ण समता भाव में रहने की साधना करना, त्रिकाल-प्रातः, मध्यान्ह, सायं 5 हुआ सामायिक की क्रिया न करे। १६. सामायिक के काल में ही सामायिक करे। तीन लोक के भावों से मन को रोककर स्वात्मा का चिंतवन करना स्थायी शाश्वत १७. दुष्टता युक्त होकर सामायिक न करे । १८. दूसरों को भय उपजाता हुआ सामायिक प्रतिमा है। सामायिक न करे। १९. सामायिक के समय सावध वचन न बोले।२०.दूसरों की समय आत्मा को कहते हैं इसलिये सामायिक के समय शांत चित्त होकर मात्र निंदा न करे। २१. भौंह चढ़ाकर सामायिक न करे। २२. मन में सकुचाता हुआ एक अपने आत्मा का ही चिंतवन करे, कोई चिंता न करे, न किसी से बातचीत का सामायिकन करे। २३. दसों दिशाओं में इधर-उधर अवलोकन करता हुआ सामायिक विचार करे और न बात करे,न भोजन की चिंता करे, न कहीं आने-जाने का विचार न करे। २४. स्थान के देखे-शोधे बिना सामायिक को न बैठे। २५. जिस-तिस करे, न किसी की बात सुनने में उपयुक्त हो,न शोक करे, न कोई संदेह की बात मन प्रकार सामायिक का काल पूरा न करे। २६. सामायिक की सामग्री में बाधा पड़ने में लावे । मन, वचन, काय को निश्चल रखकर हृदय से शुद्ध होकर अपने आत्म पर सामायिक में नागा न करे । २७. बांछा युक्त होकर सामायिक न करे । स्वरूप का चिंतवन ध्यान करना सामायिक है। २८.सामायिक का पाठ हीन न पढ़े तथा काल पूरा हुए बिनान उठे। २९.खण्डित यहां तीसरी सामायिक प्रतिमा का स्वरूप बताया जा रहा है, सामायिक दूसरी5 पाठ न पढ़े।३०. गूंगे की तरह न बोले।३१. मेंढक की तरह ऊँचे स्वर से टर्र-टर्र , प्रतिमा में भी थी परन्तु वहां अभ्यास रूप थी, कभी कोई कारण वश नहीं भी करे; नबोले। ३२. चित्त चलायमान न करे। किन्तु यहां नियम से प्रातः,मध्यान्ह व सायंकाल कम से कम ४८ मिनिट अर्थात् दो इस प्रकार निर्दोष सामायिक करने वाला श्रावक हमेशा समता भाव में रहने घड़ी सामायिक करना आवश्यक है। सामायिक प्रतिमावाला निर्दोष सामायिक करे, वाला तथा अपने आत्म स्वरूप की साधना में रत मुक्ति मार्ग का पथिक सामायिक उपसर्ग आने पर भी प्रतिज्ञा से न टले और राग-द्वेष रहित सहन करे, उस समय प्रतिमाधारी होता है।

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