Book Title: Shravakachar
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Gokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur

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Page 308
________________ 074 Ouी आचकाचार जी तारण की जीवन ज्योति : संक्षिप्त परिचय से दूर रहते हैं। यद्यपि सन्तों का लक्ष्य तो आत्म हितकारी वीतरागी मार्ग भारतीय संस्कृति के इतिहास में इस देश के मानव समाज को पर निरंतर चलते रहने और आत्म कल्याण करने का होता है, यही कारण है कि आध्यात्मिक क्रान्ति द्वारा आत्महित की मंगलमयी दिशा देने वाले संतों की वे राग के निमित्तों से हटते बचते हुए स्वभाव की आराधना में रत रहते हैं फिर / परम्परा में वीतरागी संत आचार्य श्री जिन तारण स्वामी का नाम अग्रणीय है। भी खिले हुए पुष्प की फैलती हुई सुगंध की भांति ज्ञानी महापुरुषों की आत्म भारत अध्यात्म प्रधान देश है। यहां समय-समय पर अध्यात्मवादी संतों आराधना और वीतरागता की महिमामय साधना की सगंध चहं ओर फैलती है. ने जन्म लेकर धर्म के नाम पर क्रियाकाण्ड आडम्बर और पाखण्डवाद से शोषित, जिससे जगत के जीव सहज ही उनकी ओर आकर्षित होते हैं और उनसे विशाल जन समुदाय को सन्मार्ग दिखाया, मानवीयता का मूल आधारभूत , वीतरागी तत्व ज्ञान प्राप्त कर आत्म कल्याण करते हैं। अध्यात्ममय धर्म का स्वरूप जगत के जीवों को बताकर अनन्त-अनन्त उपकार श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज का जन्म जैन कुल में किया है। ॐ अवश्य हुआथा ; परन्तु वे जाति सम्प्रदाय आदि के सभी बन्धनों से दूर जन-जन सन्त तारण स्वामी ऐसे ही महान व्यक्तित्व के धनी थे। जिनके जीवन के सन्त थे। संसार के समस्त जीवों के प्रति जिनके हृदय में करुणा का सागर में अध्यात्म और वीतरागता का अपूर्व सामंजस्य था। प्रचुर स्व संवेदन सहित हिलोरें ले रहा हो और प्राणी मात्र जिन्हें परमात्म स्वरूप दिखाई देता हो ऐसे जिनकी वीतराग दशा दिनों दिन बढ़ रही हो और जिनके जीवन से आध्यात्मिक संत के अन्तरंग में "अयं निजः परोवेत्ति" यह अपना है और यह पराया है, ऐसी महान क्रान्ति का इतिहास जुड़ा हो, ऐसे महान प्रतिभा सम्पन्न आचार्य तारण हैं निम्न भावना तो होती ही नहीं है अपितु “वसुधैव कुटुम्बकम्' का उदार स्वामी अपने आप में विरले ही सन्त थे। उनका जन्म सोलहवीं शताब्दी में विक्रम चारित्र प्रगट होता है और यह विशेषता सन्त तारण स्वामी के जीवन में उनकी संवत् १५०५ मिती अगहन सुदी सप्तमी को पुष्पावती नगरी (बिलहरी) में पिता आत्मानुभूति तथा अध्यात्म साधना के द्वारा प्रगट हुई थी। उनका व्यक्तित्व श्री गढ़ाशाह जी, माता श्री वीरश्री देवी के यहाँ हुआ था। इतना प्रभावशाली था कि जो भी व्यक्ति उनका जन कल्याणकारी उपदेश बचपन से ही वैराग्य सम्पन्न साधुता के संस्कारों से ओतप्रोत श्री जिन सुनता, उनके दर्शन करता वह स्वयं ही उनके प्रति श्रद्धा सहित समर्पित होकर तारण स्वामी ने अल्पवय में ही विशिष्ट ज्ञानार्जन कर वीतरागीधर्म मार्ग पर चलने अध्यात्म का मार्ग ग्रहण कर लेता था। का दृढ़ संकल्प करके स्वयं आत्म कल्याण के मार्ग पर चलते हए भारतीय ऐसे आध्यात्मिक क्रान्तिकारी संत श्री गुरू तारण स्वामी के जीवन वसुन्धरा पर मानव मात्र के लिये हितकारी शुद्ध अध्यात्मवाद का शंखनाद परिचय को जानने की जिज्ञासा समस्त समाज बन्धओं को रही है परन्त उनके किया और जन-जन को यह स्पष्ट रूप से बता दिया कि मानव का धर्म एक मात्र ही ग्रन्थों में अन्तर्निहित उनके जीवन्त परिचय को खोजने वाली दृष्टि का अभाव अपने शुद्ध चैतन्य स्वरूप की पहिचान कर अहिंसा, सत्य, मैत्री, दया और होने से समाज की इस जिज्ञासा की पूर्ति अभी तक न हो सकी थी। वर्षों से चली प्रेममय जीवन बनाना ही है। * आ रही इस अपूर्ण जिज्ञासा की पूर्ति के लिये यह मात्र तारण तरण जैन समाज सत्-असत् के पारखी, सत्य के अनुभवी सन्त कहलाते हैं। आत्म का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण जैन समाज का सौभाग्य है कि वीतरागी महान संत ज्ञानी वीतरागी सन्तों को जनरंजन राग, कलरंजन दोष, और मनरंजन गारव से सद्गुरू श्री जिन तारण स्वामी की परम्परा में अध्यात्म शिरोमणी पूज्य श्री कोई प्रयोजन नहीं रहता इसीलिये वे यश की चाह और लौकिक प्रभावना के राग ज्ञानानन्द जी महाराज विगत २५ वर्षों से अध्यात्म साधना में रत रहते हुए सम्पूर्ण २८७

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