Book Title: Shravakachar
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Gokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur

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Page 295
________________ 0 श्री आचकाचार जी भजन-१९ निज इष्ट है शुखात्मा, यह ध्यान धरोरे। शुद्धात्मा में लीन रह, संसार तरो रे॥ १. देखो निज शुद्धात्मा रत्नत्रयमयी। चैतन्य लक्षण धर्म तारण गुरू ने कही। निज सत्ता शक्ति देख लो, मत मोह मरोरे..... २. ध्रुव धाम के वासी तुम, ध्रुव तत्व स्वयं हो। अनंत चतुष्टय धारी, सर्वज्ञ जयं हो। साधु पद धारण करो, मुक्ति को वरोरे..... ३. तुम ही हो परमात्मा, जिनराज हो ज्ञानी। त्रिकाल शुद्ध बुद्ध हो, कहती है जिनवाणी॥ वीतराग बन चलो, सब राग हरो रे..... ४. ज्ञानानंद स्वभावी हो, अब अपने में रहो। सद्गुरूकी बात मान लो, अब किससे क्या कहो।। ब्रह्मानंद उठो चलो, पुरुषार्थ करो रे... आध्यात्मिक भजन PRO भजन-२१ निज स्वभाव में लीन रहो तो,मचती जय जयकार है। पर पर्याय को देख उलझना, यह तो सब बेकार है। १. ध्रुव धाम की धूम मचाओ, निजानंद में लीन रहो। पर से अब क्या लेना देना,किसी से तुम अब कुछ न कहो।। रागादिभावों में भटकना, यह तो अपनी हार है ......... सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम तुम, अजर अमर अविनाशी हो। शुद्ध बुद्ध हो ज्ञाता दृष्टा, शुद्धं शुद्ध प्रकाशी हो। तुम हो तो भगवान आत्मा, बाकी सब संसार है........ ३. निज सत्ता शक्ति को देखो, अनंत चतुष्टय धारी हो। केवलज्ञान स्वभाव तुम्हारा, शिवपुर के अधिकारी हो। मुक्ति श्री में रमण करो, बस इसमें ही अब सार है ....... ४. ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, जगत पूज्य भगवान हो। दृढता धर पुरुषार्थ जगाओ, कैसे महिमावान हो। सहजानंद साधु पद धारो, अब हो रही अवार है ..... भजन-२२ हे भवियन, ममल रमण अब कीजे। सिद्धि मुक्ति का आनंद लूटो, अमिय रसायन पीजे ॥ १. ममलह ममल स्वभाव है अपना, देख स्वयं ही लीजे। शुद्ध बुद्ध अविनाशी चेतन, अपने में बल दीजे...हे.. २. चाह लगाव छोड़ दो पर का, मुक्ति श्री से मिलीजे। निजानंद में रहो निरंतर, जय जयकार मचीजे...हे ३. निज सत्ता शक्ति को देखो, अपने में ही रहीजे। पर पर्याय देखना छोड़ो, सहजानंद रमीजे...हे ४. ज्ञानानंद स्वभाव तुम्हारा, पर में कहा करीजे। सत्पुरुषार्थ जगाओ अपना, साधु पद धर लीजे...हे ..... भजन-२० चलो चलो रे मुक्ति श्री पास , जगत में कहाँ फसे । १. निज स्वभाव में मुक्ति श्री बैठी, मोह राग की लगी है कैंची। दलो दलो रे मोह मिथ्यात्व....... जगत में ......... २. अतीन्द्रिय आनंद परमानंद देवे , सारे दुःख दारिद्र हर लेवे। करो करो रे कछु तो पुरुषार्थ ....... जगत में ....... ३. जन्म मरण के दु;ख से छुड़ावे,कर्म कषायों को मार भगावे। ढलो ढलो रे निज शुद्धात्म ....... जगत में... ४. ज्ञानानंद स्वभाव तुम्हारा , निजानंद का ले लो सहारा। भलो भलोरे मुक्ति को वास ....... जगत में ...... २७४

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