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[ शास्त्रवातो. हत.७ श्लो. २३
विलक्षणबुद्धिग्रामा रूपादय एकानेकात्मकप्रत्ययग्रावारूपादिरूपघटता प्रतिपद्यन्त इति विशेष्यलोपावाच्यः । अथाप्यरूपादिरूपा रूपादयः, नन्वेवं रूपादय एव न भवन्ति, इति तेषामभावे केऽसंदुतरूपतया विशेष्या येनासंदूतरूप रूपादयो घटो भवेत् ? इत्येवमप्यवाच्यः । अनेकान्तवादे तु कथञ्चित्तथा ।
[१४-रूपादि से मंगत्रय का उपपादन ] अथवा तृतीय भंग के बारे में इसप्रकार अवधारणा की जा सकती है। गुणगुणी के प्रमेदवाव में घटादि यह रूपादि का समूह है। समूह रूप में गहामाण न होकर पृथक पृथक् गृह्यमाण रूपावि यह घट का पर रूप है, क्योंकि घट केवल एक एक रूपाधात्मक महों है। और असंदुतरूपत्व अर्थात समूहलाहमा मामा मास्टमा सम है। इन दोनों रूपों से घट की युगपद विवक्षा होने पर एकान्तवाव में घट सर्वथा प्रवक्तव्य हो जाता है। क्योंकि रूपादिसमूहमावानापन्न प्रत्येक रूपावि, यह घट नहीं है। घट स्वयं अरूपादि है क्योंकि घटशद से घट का भान होता है रूपादि का नहीं । अब गुण-गुणी का अभेद मानने से घट रूपादिसमूहमावापन्न होता है, तम रूपादि-समूहभावापन घटावि प्रर्थ एक एक रूपादि से भिन्न होने के कारण, अरूपाविशय से व्यवहृत होनेवाले घटादि अप से ध्यावृत्त है-भिन्न है और अरूपादि घट समूहभावापन्नरूपाचास्मक होने से एक एक रूपादि मात्र स्वरूप नहीं है। अतः रूपावि में घटात्मकता अवाच्य है। क्योंकि परस्परविलक्षणबुधि से ग्राह्य एक एक रूपावि 'एकानेकात्मक प्रत्यय' अर्थात एक समूहात्मना प्रतेक को प्रहण करनेवाले शान से ग्राह्य जो अरूपाविस्वरूप घट, उस घट को अभिन्नता नहीं प्राप्त कर सकते । इसलिये विशेष्य का लोप होने से अर्थात् समूहभावापन्न होने पर रूपाद्यास्मकता न रह जाने के कारण समूहमावा. पन्नरूपावि' इस उक्ति में विशेष्यभूत हो कर प्रतीत होने वाले रूपादि का अभाव होने से समूहभाषापन्न रूपाद्यात्मक घट का अभाव हो आयगा । फलतः अप्तत हो जाने से घट सर्वथा अवास्य हो जायगा।
यदि यह कहा जाय कि रूपादि अरूपादिव्यावृत्त नहीं है किन्तु मरूपावि स्वरूप है तो यह कहना समीचीन नहीं है क्योंकि जब वह अरूपादि स्वरूप होगा तो रूपादियानी रूपादिस्वरूप कसे हो सकेगा अतः रूपादि का अभव हो जाने पर प्रसंदतरूपत्व विशेषण से उन्हें विशेषिस नहीं किया जा सकता। अत एव घट प्रसंदुतरूपादि स्वरूप नहीं हो सकता । अत: ऐसा कहने पर भी घट अवाच्य होगा। क्योंकि इस रूप से घटस्वरूप का प्रतिपादन करने पर भी घट का अभाव हो जाता है। किन्तु अनेकान्सवार में घट के कश्चिद रूपादि-प्ररूपावि उभपारमक होने से उभयरूप से युगपत् विषक्षा करने पर घटकोकश्चिद अवाच्यताहो सकता।
यदि वा, रूपादयः पररूपं, मतुवर्थः स्वरूपम् , रूपाद्यात्मकैकाकारावभासप्रत्ययविषयव्यतिरेकेणापररूपसंबन्ध्यनवगतेविशेष्याभावाद् न रूपादिमान् घट इत्यवाच्यः । न चैकाकारप्रतिमासग्राहव्यतिरेकेण पररूपादिप्रतिभासः, इति विशेषणाभावादप्यवाच्यः । अनेकान्ते तु
कथञ्चित् तथा।
___ अथवा, बाह्यः पररूपम् , उपयोगस्तु स्वं रूपम् , ताभ्यामादिष्टोऽवक्तव्यः, तथाहि-य उपयोगः स घट इत्युक्ती उपयोगमाप्रमेव घट इति सर्वोपयोगस्य घटत्वप्रसक्तिः , इति प्रति