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( २०६ । बिनयवचनयुक्तः शांतिकांतानुरक्तो । नियतकरणवृत्तिः संघजातनसक्तिः ।। शमितमदकषायः शांतसन्तिरायः । स धिमलगुणविशिष्टो दातृलोके विशिष्टः ॥
अर्थ-जो विनय वचनयुक्त है, शांति का अनुरागी है। इन्द्रियों को जिसने वश में कर रखा है, जिसे जैन संघ में प्रसन्नता है, पाठमद और कषाय को जिसने शांत किया है। एवं जिसके सर्व अन्तराय दूर हो गये हैं और निर्मल गुणों को धारण करने वाला है । उसे उत्तम दाता कहते हैं ।
और भी कहते हैं। वैद्या नृप्रकृतिर्यथानलविधि ज्ञात्वैव रक्षन्ति तान् । सर्वष्टा दशधराम्य लोभमतयः क्षेत्र यथा कार्षिकाः॥ गांधरार्थना शान्ति बगया रक्षेयुरुर्वीश्वराः ।
नित्यं स्वस्थलवतिनो वृषचितो धर्म च धर्माश्रितान् ॥ १० अर्थ-जिस प्रकार वैद्य रोगियों की प्रकृति वा उदराग्नि को जानकर और योग्य औषधि वगैरह देकर उनकी रक्षा करते हैं, जिस तरह किसान अपने खेत की रक्षा करते हैं, ग्वाले दूध के लिये गाय की रक्षा करते हैं, एवं राजा जिस तरह अपने राज्य की रक्षा करते हैं। उसी तरह धर्मात्मा लोग आहार दान द्वारा धर्म की तथा मुनि अादि धर्मात्माओं की रक्षा करते हैं ।
औषध-बान-रोग दूर करने के लिये शुद्ध औषधि (दवा) प्रदान करना प्रौषधदान है । मुनि आदि व्रती पुरुषों के रोग निवारण के लिये उनको प्रासुक औषध आहार के समय देना चाहिये, भोजन भी ऐसा होना चाहिये जो रोगबृद्धि में सहायक न होकर रोग शान्त करने में सहायक हो । अन्य दीन दुःखी जीवों का रोग दूर करने के लिए करुणा भाव से उनके लिए बिना मूल्य औषध बांटना, औषधालय खोलना, बिना कुछ लिये मुफ्त चिकित्सा करना औषधदान है । मौषधदान में वृषभसेन प्रसिद्ध हुआ है।
ज्ञान-दान-- मुनि व्रती स्यागी पुरुषों को स्वाध्याय करने के लिये शास्त्र प्रदान करना, ज्ञानाभ्यास के साधन जुटाना तथा सर्वसाधारण जनता के लिए पाठशाला स्थापित करना, स्वयं पढ़ाना, प्रवचन करना उपदेश देना, जिन याणी का उद्धार करना, पुस्तके बॉटना ज्ञानदान है । ज्ञान पान में कोपडेश प्रसिद्ध हुमा है।