Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

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Page 393
________________ (२८१) भाग का विरलन करके प्रत्येक के ऊपर धनौगुल रखकर परस्पर गुरणा करने से जो राशि प्रावे वह जगत्प्रेणी है। जगत्श्रेणी का सातवा भाग राष्ट्र है। जगश्रेणी का जगत्श्रेणी से गुणा करने पर जगत्प्रतर होता है। जगररेणी के घन को लोक कहते हैं। दंश कोड़ा कोड़ी सागरों का एक उत्सर्पिणी काल होता है। अवसपिणी काल का भी उतना ही प्रमाण होता है। उन दोनों को मिलाने से कल्प नामक काल होता है। बेवळखिळ भोगवायुध । कळेवरोछोति धुद्धियुपिरिणयोळ । बलमु भोगमुमायुं । कळेवरोछोतियुमिळिगुभवसपिणीयोळ ॥१३॥ ... प्रासद के दो भेद हैं-१ भावालव, २ द्रव्यासद । जो शुभाशुभ परिणाम हैं वह भावास्रव हैं । उस भाषास्रव के निमित्त से प्रति समय कार्माण स्कन्ध रूप समय-प्रबद्ध का आना द्रव्यास्रव है। इस द्रव्यास्रव को परिहार करने के लिये परम अत्यन्त सुखमूर्ति रूप निरास्रव सहजास्म-भावना को भाना चाहिए । बंधहेतवः पंचविधाः ॥४८॥ अर्थ-पांच मिथ्यात्व, पांच अविरत, पंद्रह प्रमाद, चार कषाय, और ३ योग ये पांच भावासद के कारण हैं । स्त्री कथा, भोजन कथा, राष्ट्र कथा, अवनिपाल कथा ये चार विकथा, क्रोध आदि चार कषाय, स्पर्शनादि इन्द्रिय पांच, स्नेह, निद्रा ये पंन्द्रह प्रमाद हैं। विकथाश्च कषायाल्यस्नेहनिद्राश्चतुश्चतुः । पंसककाक्षसंचारे प्रमावाशीतिबंधकाः ।१७। - योनी-स्त्री कथा, भोजन कथा, अयं कथा, राज कथा, चोर कथा, वैर कया, पर-पाखंडि कथा, देश कथा, भाषा कथा, गुण वध कथा, विकथा, निष्ठुर कथा, पैशून्य कथा, कंदर्प कथा, देश कालानुचित कथा, भंड कथा, मूर्ख कथा, प्रात्मप्रशंसा कथा, पर-परिवाद कथा, पर जुगुप्सा कथा, पर पीड़ा कथा, भंड कथा कलह कथा, परिग्रह कथा, कृष्यादि व्यापार--कथा, संगीत कथा, वाद कथा, इस प्रकार पच्चीस विकथायें हैं। सोलह कषाय,हास्यादि नव नोकषाय इस प्रकार ये पच्चीस कषायें हैं। स्पर्शनादि छह इन्द्रिय, स्त्यानगृध्यादि पांच निद्रा स्नेह मोह, प्रणय दो इस प्रकार ये सब मिलकर श्रेषट प्रमाद होते हैं। उसके अक्षसंचार से ३७५०० भेद होते हैं । अथवा पन्द्रह प्रमाद के अन्तर्भाव होकर चार भेद वाले होते हैं।

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