Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

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Page 408
________________ (१५) पिरयं सासण सम्मो ण गच्चदित्ति य तस्स रिसरयाए । • मिच्छाविस सेस दो सगसगचरमोति पायध्वो ॥६६॥ अर्थ-सासादन गुणस्थान वाला नरक को नहीं जाता है इस कारण उसके नरक गत्यानुपूर्वी का उदय नहीं होता। शेष समस्त प्रकृतियों का उदय मिथ्यात्व प्रादि गुणस्थानों में अपने अन्त समय तक होता है । अब उदय न्युच्छित्ति बतलाते हैं - परगरणय इगिसत्तरस अड पंच च चउर छक्क छच्चेव । इगि बुग सोलस तीस वारस उदये प्रजोगंता ॥६॥ प्रार्थ-मिथ्यात्व प्रादि १४ गुणस्थानों में उदय ब्युच्छित्ति यानी-मागे के गुणस्थानों में उदय न होनेवाली प्रकृतियों की संख्या कम से ५, ६, १, १७, ८, ५, ४, ६,६, १, २, १६, ३० और १२ है । मिच्छे मिच्छादाब सहुमतियं सासणे प्रणेइंदी। थावरवियलं मिस्से मिस्स च य उदयवोछिपणा ॥६॥ अर्थ-मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व, पातप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, अस्थिर इम ५ प्रकृतियों की उदय युच्छित्ति होती है। सासादन में अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, एकेन्द्रिय, स्थावर, दोइन्द्रिय, तीन-इनद्रिय, चार इन्द्रिय (विकलत्रय) ये ६ प्रकृतियां तथा मिश्र गुणस्थान में सम्यक-मिथ्यात्व की उदय-ज्युच्छित्ति होती है। अयदे विवियकसाया बेगुश्वियछक्क रिसरयदेवाऊ । मण्यतिरियाणपुश्वी दुब्भगपादेज्ज प्रज्जसयं ॥६॥ अर्थ-चौथे गुणस्थान में अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया व लोभ, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अगोपांग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी नरकगति, नरकगल्यानुपूर्वी, नरकायु, देवायु, मनुष्यगत्यानुपूर्वी तिर्यग्गल्यानुपूर्वी, दुभंग, अनादेय और अयशकीति इन १७ प्रकृतियों को उदय व्युच्छित्ति होती है। से सवियकसाया तिरियाउज्जोव चितिरियगवी - छुढे पाहारदुगं थीणतियं उदयवोच्छिण्णा ॥७०।। यानी-पांचवें गुणस्थान में प्रत्याख्यानावरण क्रोध भान माया लोभ तिर्थयमायु, उद्योत, नोच गोत्र, तिर्यंचगति इन ८ प्रकृतियों की तथा छठे गुणस्थान में प्राहारक शरीर आहारक अंगोपांग निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला स्त्यानगृद्धि इन ५ प्रकृतियों की उदय-व्युच्छित्ति होती है।

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