Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 367
________________ पदार्थ का स्वरूप अपनी तथा अन्य की अपेक्षा से एक साथ कहना चाहें तो किसी भी शब्द द्वारा नहीं कह सकते, इस कारण पदार्थ युगपत् (एक (साथ) अस्तिनास्ति रूप न कहे जाने के कारण स्थात् प्रवक्तव्य (न कहे जा सकने योग्य.) है। जैसे दिल्ली मुगपत् अपनी तथा बम्बई को अपेक्षा किसी .भी शब्द से नहीं कही जा सकती। पदार्थ अपने रूप से है और अपने तथा अन्य की अपेक्षा युगपत् कहा भी नहीं जा सकता यह स्यादस्ति प्रवक्तब्ध है। जैसे दिल्ली-अपने रूप से तो है परन्तु इसके साथ युगपत् स्व-पररूप से प्रवक्तव्य भी है। पदार्थ अन्य पदार्थ की अपेक्षा नहीं है इसके साथ ही युगपत् स्वभर की अपेक्षा प्रवक्तव्य है, यह स्यात् नास्ति अक्तव्य भंग है । जैसे दिल्ली नगर बम्बई की अपेक्षा नहीं है और युगपत् अपनी तथा बम्बई को अपेक्षा न कहे जा सकने के कारण प्रवक्तव्य भी है। पदार्थ क्रम से अपनी अपेक्षा से है तथा अन्य की अपेक्षा से नहीं हैं एवं मुगपत् स्व-पर की अपेक्षा से प्रवक्तव्य है । जैसे दिल्ली अपनी अपेक्षा से है, बम्बई की अपेक्षा से नहीं है तथा युगपत् स्व-पर की अपेक्षा प्रवक्तव्य है। सप्तभड़ी की ये सातों भंगें कथंचित ( किसी एक दृष्टिकोण से) की अपेक्षा तो सत्य प्रमाणित होती है इसी कारण इनके साथ स्यात् पर लगाया जाता है, यदि इनको स्यात् न लगाकर सर्वथा (पूर्ण रूप से) माना जावे तो ये भगें मिथ्या होती हैं। कहा भी है। सवेकनित्यवत्तव्यास्तद्विपक्षाश्च ये नयाः। सर्वथेति प्रदुष्यन्ति पुष्यन्ति स्यावितीह ते ॥ इसका अर्थ ऊपर लिखे अनुसार ही है । इस प्रकार स्यात् पद लगाकर सात भंगों के कहने के सिद्धान्त को ही 'स्याद्वाद' कहते हैं। पंच भावा: ॥१७॥ अर्थ-जीव के असाधारण (जीव के सिवाय अन्य किसी द्रष्य में न पाये जाने वाले ) भाव पांच हैं। १-ौपशमिक, २-सायिक, ३-क्षायोपशमिक ४-प्रौदयिक और ५-पारिणामिक । प्रौपशमिको द्विविधः ||१|| अर्थ-जो भाव कर्मो के उपशम होने से (सत्ता में वठ जाने से) जो कुछ . .

Loading...

Page Navigation
1 ... 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419