Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 380
________________ ( ३६८) अप्रत्याख्यानाचरण देश चारित्र का, प्रत्याख्यानावरण सकल चारित्र का और . संज्वलन कषाय यथाख्यात चारित्र का घात करता है । तीव्र मन्द मध्यम' आदि भेदों से कषायों के असंख्यात भेद हैं। अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान आदि का क्रोध कम से पत्थर को रेखा समान, पृथ्वी की रेखा समान, धूल की रेखा समान और पानी की रेखा समान है। अनन्ताबन्धी आदि चारों कषायों का मान क्रम से पत्थर, हड्डी, लकड़ी तथा बंश के समान है। वारा कमायों की भाया क्रम से बांस की जड़ के समान, मेंढे के सींग के समान, गाय के भूत्र समान तथा खुरपे के समान है। अनन्ताबन्धी आदि का लोभ क्रम से मजीठ के रंग समान, गाड़ी के पहिये के मैल (ओंगन) के समान, कुसुम के रंग समान तथा हल्दी के रंग के समान होता है । अष्टज्ञानानि ॥३॥ मतिज्ञान, श्रृतिज्ञान, अवधिज्ञान तथा मनः पर्ययज्ञान ये चार शान क्षोयपशम के निमित्त से होते हैं । केवल ज्ञान ज्ञानावरण के क्षय से होता है। ये पांचों ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाते हैं। कुमति कुश्रुत और विभंग ये तीन ज्ञान अज्ञान कहलाते हैं । इस प्रकार ज्ञान मार्गणा के पाठ भेद होते हैं सैनीपंचेन्द्रिय पर्याप्त को विभंग ज्ञान मिथ्यात्व तथा सासादन गुणस्थान में होता है। मिश्र गुणस्थान में सत्ज्ञान अज्ञान मिश्रितरूप में तीन ज्ञान होते हैं। मति श्रुत तथा अवधिज्ञान असंयत सम्यग्दृष्टि को होता है। मनःपर्यय ज्ञान प्रमत्तसंयत से क्षीण कषाय गुणस्थान तक होता है। केवल ज्ञान केवलो तथा सिद्ध भगवान में होता है । सप्त संयमाः ॥३६॥ १ सामायिक, २ छेदोपस्थापना, ३ परिहार विशुद्धि, ४ सूक्ष्मसापराय, ५ यथाख्यात, ६ देशसंयत ७ असंयम ये संयम सात प्रकार के हैं। किस कषाय से कौन सा संयम होता है सो बतलाते हैं -बादर संज्वलन कषाय के उदय से पहले के तीन बादर संयम होते हैं। सूक्ष्म संज्वलन लोभ से सूक्ष्म सामराय संयम होता है। समस्त मोहनीय कर्म के उपशम तथा क्षय से यथाख्यात संयम होता है । समस्त सावध योग का एक देश रूप से त्याग करना सामायिक चारित्र है। सामायिक चारित्र से डिगने पर प्रायश्चित्त के द्वारा सावध व्यापार में लगे हुए दोषों को छेद कर पुनः संयम धारण करना छेदोप स्थापना नामक चारित्र है। अथवा समस्त साबध योग का भेद रूप से त्याग करना छेदोपस्थापना चारित्र

Loading...

Page Navigation
1 ... 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419