Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

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Page 365
________________ (३५३) तमिति । यः सोपाधिविषर्याऽशुद्ध-निश्चयः, यथा मतिज्ञानादयो जोयिते । व्यवहासे द्विविधः-सद्भूतव्यवहार असद्भूतव्यवहारस्तव वस्तुविषयः सद्भूतव्यवहारोऽभिन्नवस्तुविषयोऽसद्भूतव्यवहारो द्विविध उपचारितानुपरितभेदात् तत्र सोधाधिकारिणविषय उपचरित सद्भूत व्यवहारः । यथा जीवस्य मतिज्ञानादयो गुणाः । निरुपाधिगुरागुणिभेदविषयानुपचरित . सद्भूतव्यवहारः। यथा जीवस्य केवलज्ञानादयो गुणाः । असद्भूतो व्यवहारोद्विविधाः उपचरितानुपचरितभेदास्त्तत्र संक्लेशरहितवस्तु सम्बन्ध - विषय-उपर्चारतासद्भूतव्यवहारः । यथा शीय पासायनित्यादि । शंक्लेशरहित वस्तु-सम्बन्ध-विषयः अनुपचरितसद्भुतव्यवहारः । यथा जोबस्य शरीरमिति । एवमध्यात्मभाषया षपण्या : । समस्त जीव शुद्ध बुद्ध कस्वभाव वाले हैं ऐसा कहना शुद्ध निश्चय नय है । केवलज्ञानादि शुद्ध गुण जीव सम्बन्धी कहना अनुपचारित सद्भूतव्यवहार नय है। मतिज्ञानादि विभावगुण जीवसम्बन्धी हैं, उपचरित सद्भूत व्यवहार नयसे शरीरादि जोवसम्बन्धी कहे जाते हैं, अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नयसे । ग्रामप्रादि उपरित सद्भूत नयसे जीव-सम्बन्धी कहे जाते हैं। - - -- - - - गाथा जावदिया धयरणविहा ताबदिया चेव होंति एयवादा जावदिया रपयवादा तायरिया चेव होंति परसमया ॥१२॥ प्रमाणनयनिक्षेपर्योऽर्थानभिसमीक्ष्यते । पुक्त्यम्भायुक्तिवदाति तस्यायुक्तच युक्तिवत् ॥१३॥ ज्ञानं प्रमाणमित्याह रूपयो न्यासमुच्यते । नयो ज्ञातुरभिप्रायो युक्तितोऽर्थःपरिग्रहः ॥१४॥ स्वास्मोपलब्धि के विरूद्ध अनात्मोपलब्धि है। इसको यहां संक्षेप से दिग्दर्शन कराते हैं। स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव यह अन्तरङ्ग स्वचतुष्टय है । पर (अन्य) द्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और परभाव ये बहिरंग हेतु है। इसको यहां दृष्टान्त से बतलाते हैं। हेमपाषाण ( खान से निकला हुआ पत्थर से मिला हमा सोना ) स्वद्रव्य है । उस हेमपाषाण के अपने प्रदेश उसका स्वक्षेत्र है । उसको प्रतीत अनागत पर्याय उसका स्वकाल है। उसके क्रिया-परिणत वर्तमान निजी परिगमन स्वभाव है । इसमूलिका ( जिसके द्वारा उसको शुद्ध किया जाता है ) धनस्पति

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