Book Title: Shastrasara Samucchay
Author(s): Maghnandyacharya, Veshbhushan Maharaj
Publisher: Jain Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 332
________________ : .. .. अन्यसंघ के 'पाये हुए मुनियों का अंगमर्दनःप्रियवन्त्रत रूप विनय करना, पासनादि पर बैठाना इत्यादि उपचार करना, गुरु के : विराजने का स्थाने पूछना, पागमन का रास्ता पछनासंस्तर पुस्तक आदि उपकरणों का देना और उनके अनुकूल प्राचरणादिक करना विसयोपसम्मत है !! ...... :::आगे. क्षेत्रोपसम्पत् कहते हैं: F.', ": : । ...... ..:: : संयम तप ':उपशमादि शुग का सरक्षारूप: शील तथा जीवनपर्यन्त त्यागरूप यम, काल नियम से त्याग कारमेन रूप नियम इत्यादिक जिस स्थान में रहने से बढ़ें उत्कृष्ट में उस क्षेत्र में रहता क्षेत्रोपसंपतु. है..... . . ..पाये मार्गोपसंपत् कहते हैं : ....... ... . .. अन्य संघ के आये हुये मुनि तथा अपने स्थान में रहने वाले मुनियों से . आपस में ग्राने जाने के विषय में कुशल का पुछना कि 'आप अानन्द से प्राये. व सुख से पहुंचे, इस तरह पूछना संयमतपज्ञान योग गुणों से सहित मुनिराजों के । मार्गोपसंपत् होता है। . आगे सुखदुःखोपसंपत् को कहते हैं:-.. सुख दुःख युक्त पुरुषों को वसतिका आहार औषधि प्रादि से उपकार करना अर्थात् शिष्यादि का लाभ होने पर कमंडलु आदि देना व्याधि से पीड़ित हुये को सुखरूप सोने का स्थान बैठने का स्थान बताना, ग्रीषध अन्नपान मिलने का प्रकार बताना, अंग मलना तथा 'मैं अपका हूं आप अाज्ञा करें, वह करूं, मेरे पुस्तक शिष्यादि अापके ही हैं, ऐसा वचन कहना सुखदुःखोपसंपत् है ! आगे सूत्रोपसंपत् का स्वरूप कहते हैं:- ..... .... सूत्रोपसंपत् के तीन, भेद हैं । सूत्र, अर्थ और उभय । सूत्र के लिये यत्न करना सूत्रोपसंपत्, अर्थ के लिए यत्न करना अर्थोपसंपत् तथा दोनों के लिए यल करना सूत्रार्थोपसंपत् है । यह एक एक भी तीन तरह है-लौकिक, वैदिक और सामाजिक । इस प्रकार नौ भेद हैं । व्याकरण गरिणत आदि लौकिक शास्त्र हैं, सिद्धांत शास्त्र वैदिक कहे जाते हैं, रूद्वादन्यायशास्त्र व अध्यात्मशास्त्र सामाजिक शास्त्र जानना । . . . आगे पदविभागिक समाचार को कहते हैं: --- . . .:....: ...... वीर्य, धैर्यः, विद्याचल उत्साह आदि से समर्थ कोई : मुनिराज आपने गुरु से सीखे हुए सभी शास्त्रों को जानकर मन बचन काय से विनय सहित. प्रणाम करके प्रमादरहित हुन्या पुद्रे और याज्ञा मांगे तो वह पदविभागिक समाचार है। गुरु से कसे पूछे, यह बतलाते हैं ? ..! ! . . : 1 :::

Loading...

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419