Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 11
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

Previous | Next

Page 309
________________ // 87 // // 88 // ' // 89 // .. // 9 // // 12 // अज्ञानामपि बालानामार्जवं प्रीतिहेतवे। ... किं पुनः सर्वशास्त्रार्थपरिनिष्ठितचेतसाम् स्वाभाविकी हि ऋजुता कृत्रिमा कुटिलात्मता / ततः स्वाभाविकं धर्मं हित्वा कः कृत्रिमं श्रयेत् ? छल-पैशून्य-वक्रोक्ति-वञ्चनाप्रवणे जने / धन्याः केचिनिर्विकाराः,सुवर्णप्रतिमा इव अपि श्रुताब्धिपारीणाः सर्वे गणभृदुत्तमाः / / अहो ! शैक्षाइवाश्रौषुरार्जवादहतां गिर अशेषमपि दुष्कर्म ऋज्वालोचनया क्षिपेत् / कुटिलालोचनां कुर्वत्रल्पीयोऽपि विवर्धते काये वचसि चित्ते च समन्तात् कुटिलात्मनाम् / न मोक्षः किन्तु मोक्षः स्यात् सर्वत्राकुंटिलात्मनाम् इत्युग्रं कर्म कौटिल्यं कुटिलानां विभावयन् / आश्रयेदृजुतामेकां सुधीनिर्वृतिकाम्यया आकरः सर्वदोषाणां गुणग्रसनराक्षसः। . कन्दो व्यसनवल्लीनां लोभः सर्वार्थबाधकः धनहीनः शतमेकं सहस्रं शतवानपि / . सहस्राधिपतिर्लक्षं कोटि लक्षेश्वरोऽपि च कोटीश्वरो नरेन्द्रत्वं नरेन्द्रश्चक्रवर्तिताम् / चक्रवर्ती च देवत्वं देवोऽपीन्द्रत्वमिच्छति इन्द्रत्वेऽपि हि संप्राप्ते यदिच्छा न निवर्तते / मूले लघीयांस्तल्लोभः सराव इव वर्धते हिंसेव सर्वपापानां मिथ्यात्वमिव कर्मणाम् / राजयक्ष्मेव रोगाणां भः सर्वागसां गुरुः 300 // 93 // // 94 // // 95 // // 96 // // 97 // / // 98 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354