Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 11
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // शकटानां तदङ्गानां घट्टनं खेटनं तथा / विक्रयश्चेति शकटंजीविका परिकीर्तिता शकटोक्षलुलायोष्ट्रखरीश्वतरवाजिनाम् / भारस्य वाहनाद् वृत्तिर्भवेद्भाटकजीविका सरकूपादिखननं शिलाकुट्टनकर्मभिः / पृथिव्यारम्भसंभूतैर्जीवनं स्फोटजीविका दन्तकेशनखास्थित्वग्रोम्णो ग्रहणमाकरे / वसाङ्गस्य वणिज्याथ दन्तवाणिज्यमुच्यते लाक्षामनःशिलानीलीघातकीटकणादिनः / विक्रयः पापसदनं लाक्षावाणिज्यमुच्यते नवनीतवसाक्षौद्रमद्यप्रभृतिविक्रयः / द्विपाच्चतुष्पाद्विक्रयो वाणिज्यं रसकेशयोः विषास्त्रहलयन्त्रायोहरितालादिवस्तुनः / विक्रयो जीवितघ्नस्य विषवाणिज्यमुच्यते / तिलेक्षुसर्षपैरण्डजलयन्त्रादिपीडनम् / दलतैलस्य च कृतिर्यन्त्रपीडा प्रकीर्तिता नासावेधोऽङ्कनं मुष्कच्छेदनं पृष्ठगालनम् / कर्णकम्बलविच्छेदो निर्लाञ्छनमुदीरितम् शारिकाशुकमार्जारश्वकुर्कुटकलापिनाम् / . पोषो दास्याश्च वित्तार्थमसतीपोषणं विदुः व्यसनात्पुण्यबुद्ध्या वा दवदानं भवेद् द्विधा / सरःशोषः सरःसिन्धुहदादेरम्बुसंप्लवः संयुक्ताधिकरणत्वमुपभोगेऽतिरिक्तता / . मौखर्यमथ कौत्कुच्यं कन्दर्पोऽनर्थदण्डगाः 323 // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // / / 29 //
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