Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 11
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 11 // // 12 // / / 13 // // 14 // // 15 // // 16 // न जानाति परं स्वं वा मद्याच्चलितचेतनः / स्वामीयति वराक: स्वं स्वामिनं किंकरीयति मद्यपस्य शबस्येव लुठितस्य चतुष्पथे / मूत्रयन्ति मुखे श्वानो व्यात्ते विवरशङ्कया मद्यपानरसे मग्नो नग्नः स्वपिति चत्वरे / . गूढं च स्वमभिप्रायं प्रकाशयति लीलया वारुणीपानतो यान्ति कान्तिकीर्तिमतिश्रियः / विचित्राश्चित्ररचना विलुठत्कज्जलादिव' भूतात्तवन्नरीनति रारटीति सशोकवत् / दाहज्वरार्तवद्भूमौ सुरापो लोलुठीति च विदधत्यङ्गशैथिल्यं ग्लपयन्तीन्द्रियाणि च / . मूर्छामतुच्छां यच्छन्ती हाला हालाहलोपमा विवेकः संयमो ज्ञानं सत्यं शौचं दया क्षमा। . मद्यात्प्रलीयते सर्वं तृण्या वह्निकणादिव . रसोद्भवाश्च भूयांसो भवन्ति किल जन्तवः / तस्मान्मद्यं न पातव्यं हिंसापातकभीरुणा दत्तं न दत्तमात्तं च नात्तं कृतं च नो कृतम् / मृषोद्यराज्यादिव हा स्वैरं वदति मद्यपः . गृहे बहिर्वा मार्गे वा परद्रव्याणि मूढधीः / वधबन्धादिनिर्भीको गृह्णात्याच्छिद्य मद्यपः / बालिकां युवती वृद्धां ब्राह्मणी श्वपचीमपि / भुङ्क्ते परस्त्रियं सद्यो मद्योन्मादकदर्थितः रटन् गायन् लुठन् धावन् कुप्यंस्तुष्यन् रुदन् हसन् / स्तम्भन्नमन् भ्रमंस्तिष्ठन् सुरापः पापराड् नटः 319 // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 //
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