Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 11
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ // 24 // // 26 // // 27 // // 28 // पिबन्नपि मुहुर्मद्यं मद्यपो नैव तुष्यति / जन्तुजातं कवलयन् कृतान्त इव सर्वदा दोषाणां कारणं मद्यं मद्यं कारणमापदाम् / रोगातुर इवापथ्यं तस्मान्मद्यं विवर्जयेद् चिखादिषति यो मांसं प्राणिप्राणापहारतः / उन्मूलयत्यसौ मूलं दयाख्यं धर्मशाखिनः चिखादिषति यो मांसं दयां यो हि चिकीर्षति / ज्वलति ज्वलने वल्ली स रोपयितुमिच्छति हन्ता पलस्य विक्रेता संस्कर्ता भक्षकस्तथा / केतानुमन्ता दाता च घातकाः सर्व एव ते ये भक्षयन्त्यन्यपलं स्वकीयपलपुष्टये / त एव घातका यत्र वधको भक्षकं विना मिष्टान्नान्यपि विष्टासादमृतान्यपि मूत्रसात् / स्युर्यस्मिन्नङ्गकस्यास्य कृते कः पापमाचरेत् मांसास्वादनलुब्धस्य देहिनं देहिनं प्रति / हन्तुं प्रवर्तते बुद्धिः शाकिन्या इव दुधियः ये भक्षयन्ति पिशितं दिव्यभोज्येषु सत्स्वपि / सुधारसं परित्यज्य भुञ्जते ते हलाहलम् न धर्मो निर्दयस्यास्ति पलादस्य कुतो दया / पललुब्धो न तद्वेत्ति विद्याद्वोपदिशेन हि नान्यस्ततो गतघृणो नरकार्चिष्मदिन्धनम् / स्वमांसं परमांसेन यः पोषयितुमिच्छति शुक्रशोणितसंभूतं विष्टारसविवर्धितम् / लोहितं स्त्यानतामाप्तं कोऽश्नीयादकृमिः पलम् - 218 // 29 // " . अपमाचरत् .. // 30 // // 32 // // 33 // / // 34 //
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