Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 11
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 324
________________ // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // स्त्रीशस्त्रेणापि चेत्कामो जगदेतज्जिगीषति / तुच्छपिच्छमयं शस्त्रं किं नादत्ते स मूढधीः सङ्कल्पयोनिनानेन हहा विश्वं विडम्बितम् / तदुत्खनामि सङ्कल्पं मूलमस्येति चिन्तयेत् यो यः स्याद् बाधको दोषस्तस्य तस्य प्रतिक्रियाम् / चिन्तयेद् दोषमुक्तेषु प्रमोदं यतिषु व्रजन् दुःस्थां भवस्थिति स्थेम्ना सर्वजीवेषु चिन्तयन् / निसर्गसुखसगं तेष्वपवर्ग विमार्गयेत् जिनो देवः कृषा धर्मो गुरखो यत्र साधवः / श्रावकत्वाय कस्तस्मै न श्लाघेताविमूढधीः जिनधर्मविनिर्मुक्तो मा भूवं चक्रवर्त्यपि / स्यां चेटोऽपि दरिद्रोऽपि जिनधर्माधिवासितः त्यक्तसङ्गो जीर्णवासा मलक्लिनकलेवरः / . भजन्माधुकरी वृत्तिं मुनिचयाँ कदाश्रये त्यजन् दुःशीलसंसर्ग गुरुपादरजः स्पृशन् / कदाहं योगमभ्यस्यन् प्रभवेयं भवच्छिदे महानिशायां प्रकृते कायोत्सर्गे पुराबहिः / स्तम्भवत् स्कन्धकर्षणं वृषाः कुर्युः कदा मयि वने पद्मासनासीनं क्रोडस्थितमृगार्भकम् / / कदा घ्रास्यन्ति वक्त्रे मां जरन्तो मृगयूथपाः शत्रौ मित्रे तृणे स्त्रैणे स्वर्णेऽश्मनि मणौ मृदि / मोक्षे भवे भविष्यामि निर्विशेषमतिः कदा अधिरोढुं गुणश्रेणी निःश्रेणी मुक्तिवेश्मनः / परानन्दलताकन्दान् कुर्यादिति मनोरथान् मा कदाश्रये . // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // 315

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