Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 11
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 316
________________ जितेन्द्रियो मनःशुद्ध्या ततः क्षीणकषायकः / अचिरान्मोक्षमाप्नोति जन्तुरक्षीणशर्मकम् // 40 // // सप्तदशश्रीकुन्थुजिनदेशना - मनःशुद्धिफलमयी // योनिलक्षचतुरशीत्यावर्तापातभीषणः / अयं खलु भवाम्भोधिर्महादुःखनिबन्धनम् तरणे च भवाम्भोधेरलंभूष्णुविवेकिनाम् / यानपात्रं मनःशुद्धिरिन्द्रियोर्मिजयोर्जिता // 2 // दीपिका खल्वनिर्वाणा निर्वाणपथदर्शिनी / एकैव मनसः शुद्धिः समाम्नाता मनीषिभिः सत्यां हि मनसः शद्धौ सन्त्यसन्तोऽपि यद्गुणाः / सन्तोऽप्यसत्यां नो सन्ति सैव कार्याः बुधैस्ततः // 4 // मनःशुद्धिमबिभ्राणा ये तपस्यन्ति मुक्तये / / त्यक्त्वा नावं भुजाभ्यां ते तितीर्षन्ति महार्णवम् तपस्विनो मनःशुद्धिविनाभूतस्य सर्वथा / ध्यानं खलु मुधा चक्षुर्विकलस्येव दर्पणः तप्यमानांस्तपो मुक्तौ गन्तुकामान् शरीरिणः / वात्येव तरलं चेतः क्षिपत्यन्यत्र कुत्रचित् . मनःक्षपाचरो भ्राम्यन्नपशङ्क निरङ्कुशः / प्रपातयति संसारावर्तगर्ते जगत्त्रयीम् // 8 // अमिरुद्धमनस्कः सन् योगश्रद्धां दधाति यः / पद्भ्यां जिगमिषुर्गामं स पङ्गुरिव हस्यते // 9 // मनोरोधे निरुध्यन्ते कर्माण्यपि समन्ततः / अनिरुद्धमनस्कस्य प्रसरन्ति हि तान्यपि // 10 // // 7 // 307

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