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श्रद्धार्पण महान साधिका तूं सदियों की
ना कोई तेरा सानी। चरम व्याधि के दीर्घ क्षणों में
छलकी तुझ में परम समाधि ।। स्मित हास्य की रेखा सदा
बिखरी रहती मुखमंडल पर । जिनवाणी का मंथन सुमिरण
चलता रहता हृदय पटल पर ।। शब्द निरि का मधुर प्रवाह
राग-द्वेष मन के हरता । मैत्री, प्रेम, सौहार्द की सरिता
अखिल जगत को प्रमुदित करता ।।
सेसी सत्त्व एवं ममत्व की जीवंत अनुयोग करुणा एवं निस्पृहता की धुरिम अभियोग व्यवहार एवं निश्चय धर्म का सुरधित संयोग परम पूज्या प्रवर्तिनी महोदया विचक्षण श्रीजी म.सा. के
विलक्षण जीवन गाथा को __ सादर समर्पित...
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