Book Title: Shakun Shastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 33
________________ तृतीयः प्रस्तावः। ए जग्या पली जो शय्या परथी उठीए तो पोताने जयंकर रोगनी उत्पत्ति श्राय . प्रनाते सूर्य उग्या पली वमीनीत करती वेळाए अकस्मात् मुख धाराए जो विष्टाश्राव थाय तो जाणवू के पोतानुं सात दिवसनी अंदर मृत्यु थशे. प्रजाते जाग्रत थतांज जे जळपान करवं ते पण महा अपशकुन बे. दातण करती वेळानां शकुनो. :: बावळ, लींबमो, आम्र वृद तथा जंबीर वृक्षनी माळीनुं दातण उत्तम प्रकार, जाणवू. दंतधावन करवाने पूर्व दिशा तथा उत्तर दिशा सन्मुख बेसवं ते उत्तम , पण पश्चिम दिशा सन्मुख दंतधावन करवाने बेस नहीं, केमके ते लक्ष्मीना नाशने सूचवे . दक्षिण दिशा तथा विदिशा सन्मुख दातण करवाने बेसवु ते संतानना नाशने सूचवे . वळी वांकुं, फाटेलु, अत्यंत टुंकुं,अत्यंत जासु तथा अत्यंत पातळ दातण करवायी पोताना व्यनोनाश थाय के. घारना जंबर पर बेसीने दातण करवाथी अव्यनी हानि तथा कुटुंबमां क्लेश थाय ने. उनमक पगे बेसीने दंतधावन करवाश्री पोताने जयंकर रोगनी उत्पत्ति थाय बे. दातण करती वेळाए पोताना शरीर पर जो कपोत पदीनी विष्टा पमे तो ते महा अशुलने सूचवे . ते वखते पोताना शरीर पर जो अकस्मात् को पुष्प श्रावीने पके तो जाणवु के पोताने उत्तम संततिनो साल थशे. ते समये पोताना शरीर पर जो अकस्मात् शेलमीना रसनां बिंध पमे तो जाणवू के ते दिवसे पोताने कोश माणसनी साथे क्वेश थशे. ते समये पोताना मस्तक पर श्रक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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