Book Title: Shakun Shastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 107
________________ शकुन विद्यानुं स्वरूप.. ३३१-हे पूछनार ! तुं तारा चित्तमां काम, कुटुंब, घर, संपत्ति अने धननी वृद्धि, प्रजाथी लाल तथा वस्त्रलाल विगेरेनो विचार करे ने तो तुं कुळदेव तथा गुरुनी नक्ति कर. एम करवाथी तने सारो लाल थशे. श्रा वातनो ए पूरावो ने के तुं स्वप्नमां गायने देखीश. ३३२-हे पूछनार ! तने तकलीफ , तारा लाइ अने मित्र पण ताराथी बदलीने चाली रह्या बे तथा जे तुं तारा मनमा विचार करे जे ते तरफथी तने साल मळवो देखातो नश्री, तेथी तुं देशान्तर चाट्यो जा, त्यां तने लाल थशे, तुं आम वातमा पारका धनथी वर्ताव करे . श्रा वातनी सत्यतार्नु ए प्रमाण जे के तुं स्वप्नमां जाइ तथा मित्रोने देखीश. ३३३-हे पूछनार ! तुं तारा मनमा विचार करी राखेल फळने पामीश, तने व्यवहारनी तथा नाश्थने मित्रोनी चिंता ने ते सर्व तें विचारी राखेल काम सिह थशे. ३३४-हे पूनार ! तुं चिंता कर नहीं, तने सारा श्रादमीनी साथे मुलाकात अशे, हवे तारां सर्वे मुखिनो नाश थशे, ते विचारी राखेल सर्वे काम सिह थशे. ____३४१-हे पूनार ! तारा मनमां को पराया आदमीनी साथे प्रीति करवानी श्वाने ते तारे माटे सारी थशे, तु गजराश्श नहीं, तने सुख थशे, धननो खान थशे तथा सारा श्रादमीनी सारे मुलाकात थशे. .. ३४२-हे पूनार ! तारा मनमां पराया श्रादमीनी साथे मुलाकात करवानी चिंता , तारा ठेकाणानी वृद्धि अशे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120