Book Title: Shakun Shastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 106
________________ १०३ शकुन विद्यार्नु स्वरूप.. विचार्य ने ते निरर्थक , एक महीना सुधी तारां पापनो उदय जे, तेथी तेनी आशा गेमीने तुं बीजुं काम कर, कारण के ते काम हमणां थशे नहीं. आ वातनी सत्यतानुं ए प्रमाण ने के तुं स्वप्नमां प्रोल अथवा गवैया लोकोने अथवा नगरने देखीश, सरकारथी तने तकलीफ थशे, तेथी अहींथी बीजे स्थाने चाट्यो जा के जेथी करीने तने तकलीफ थशे नहीं... ___ ३२५–हे पूबनार ! एक महीनो थयां धनने माटे तारा चित्तमां उपेग श्रया करे , परंतु हाल तारा शत्रु पण मित्र थर जशे, सुख संपत्तिनी वृद्धि श्रशे, धननो लाल अवश्य अशे अने सरकारथी पण तने कांश सन्मान मळशे.आ वातनो ए पूरावो बे के तें मैथुननी वातचित करी जे. .. ३५३-हे पूग्नार ! जो के तारा लाग्यनो थोमो उदय बे, परंतु तकलीफ तो तने बेज नहीं, तने सारी रीते रहेवाने माटे ठेका' मळशे, धननो लाल अशे, व्हाला सजनोनी मुलाकात थशे तथा सर्वे मुःखनो नाश श्रशे, तुं मनमां चिंता कर नहीं. आ वातनो ए पूरावो के तुं स्वममां व्हालानी साथे मुलाकातने जोश्श. .. ३२४-हे पूग्नार ! तारां मकान अने जमीननी वृद्धि थशे, तुं व्यापारमा संपत्तिने पामीश तथा जे विचार तें मनमां को बे ते जो के सर्व सिद्ध तो थर जशे, परंतु तारा मनमां को खटको तथा चिंता जे. श्रा वातनी सत्यतानुं ए प्रमाण ने के तारा माथामां जखमनुं निशान ने अथवा तुं रातमां लमा करीने सुतो होश्श. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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