Book Title: Shakun Shastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 105
________________ शकुन विद्यार्नु स्वरूप.. तथा तने सारो लान अशे अने कार्यमां सिद्धि थशे. श्रा वातनी सत्यतामा ए प्रमाण दे के तुं स्वप्नमां पहाम अथवा कोई जंचा स्थळने जोश. ३१५-हे पूनार ! तारा मनोरथ पूर्ण थशे, तारे माटे धननो लाल देखाय , तारा कुटुंबनी वृद्धि तथा शरीरमां सुख धीमे धीमे अशे, देवतानी तथा ग्रहोनी जे पूर्वनी पीमा ने तेनी शांतिने माटे देवता-आराधन कर. एम करवाशी तुं जे कामनो आरंन करीश ते सर्व सिद्ध थशे. आ वातनी सत्यतार्नु ए प्रमाण ने के तुं स्वप्नमां गाय, घोमा अने हाथी विगे रेने जोश.. ३१३हे पूछनार ! तारा मनमा धननी चिंता ने अने तुं कांक दिलनो नरम , तारा कुश्मने तने दबावी राख्यो , तारा मित्र पण तने सहायता करता नथी, तुं घणा सजानने राखे बे, तेश्री तारुं धन लोक खाय , तेटवा माटे थोमो वखत श्रोजी जा, परिणामे तारुं जलु थशे अर्थात् तारां सर्वे मुःख मटी जशे. या वातनो ए पूरावो ने के तारा घरमां लमा थर ने अथवा थशे. __३१४-हे पूजनार ! था शकुन कट्याण तथा गुणधी नरेख , तुं निश्चिंततानी साथ जदीश्री सर्वे कामो सिघ थाय एम चाहे वे ते सर्वे काम धीमे धीमे सिद्ध थशे. श्रा वातनी सत्यतानुं ए प्रमाण दे के तुं स्वप्नमां वृष्टि श्रवी, संपत्ति, तळाव अथवा माउली एमांथी कोइ पण वस्तुने देखीश. . ३१-हे पूछनार ! आ शकुन सारु नथी, जे काम तें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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