Book Title: Shakun Shastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 41
________________ चतुर्थः प्रस्तावः। मुमधुश्रावतुं मालुम पमे अने तेनी साथेना मनुष्यो जो रमता होय, जो सूर्य अस्त थतो मालुम पमे, अकस्मात् जो मेघनी गर्जना थाय, अकस्मात् जो घुवमनो घुत्कार शब्द संजळाय, जो शियाळनो शब्द संजळाय, जो कोश् पुरुष अथवा स्त्रीना रमवानो शब्द संनळाय, पोताने जो कोई चमर आवीने अकस्मात् मंख मारे, अकस्मात् पोताना शरीर पर जो कागमानी विष्टा पके, पोताना हाथमां लीधेलुं फळ जो अकस्मात् नीचे पमी जाय, पोते शस्त्र वती सोपारी आदिक फळने कापवू, अकस्मात् पोताना शरीर पर जो मुधनां अथवा घृतनांबिंदु पमे, पोताना कंठमां पहेरेली पुष्पनी माळा अकस्मात् जो त्रुटी जाय, पोताने जो तृषा लागे, कोई मित्र अथवा संबंधी पोताना पृष्ट नागमां जो हाथ वती तामना करे, अकस्मात् पोताना शरीर पर जो रुधिर पमे, पोताने जो वमन थाय, अकस्मात पोताना ललाटमा रहेढं तिलक जो नुसार जाय, जो कोई मित्र अथवा संबंधीना पगथी अकस्मात् पोतानो पग जो दबाइजाय, अकस्मात् खीसकोली जो पोताना शरीर पर आवीने पमे, अकस्मात् जो कोइ माणस पोताने तुन्छ फळनी नेट देवा श्रावे, जो कोई सधवा स्त्री अथवा कोइपुरुष पोतानी सन्मुख आवीने माटीनुं वासण फेंकीने नांगी नाखे, जो पोताना शरीर पर अंगारो (कोलसो) पमे, जो पोताना शरीर पर अकस्मात् पकावेलु कर अनाज पझे तो ते सर्व अशुजसूचक . पोते पोताना हाथमा रहेलु फळ बीजाने श्रापq ते पण अशुल बे. ___ शुल शकुनो थती वेळाए विलंब रहित प्रयाण करवू, तथा जाय भागमा जोरप, पाल जो जुस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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