Book Title: Shakun Shastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 96
________________ शकुनविद्यानुं स्वरूप. सांखला रजपूत श्रश् गया , जेईए परदेशगमनादिनां शुलाशुज शकुनोना विषयमां सेंकमो दोहा बनाव्या . वर्तमान समयमां रेहवे आदि धारा यात्रा करवानो प्रचार थइ गयो ने, तेथी मारवाममां पण शकुनोनो प्रचार घटी गयो ने अने घटतो चाट्यो बे. घणालोको एटलुं पण जाणता नथी के शुल शकुन शाथी थाय ने तथा अशुन शकुन शाथी थाय ने ए घणीज शरमावनारी हकीकत बे, कारण के शुलाशुल शकुनोने जाणवां तथा यात्राने वखते तेने जोवां ए घjज जरुरनुं जे. शकुन ने ते आगामी शुलाशुजनां अथवा समजो के कार्यनी सिद्धि के असिधि तथा सुख के मुःखनां सूचवनारां. शकुन बे प्रकारनांजोवामां आवे . एक तो रमल अथवा पाशा आदिघारा कार्यना विषयमा जोवामां आवे अने बीजा परदेश विगेरे वेकाणे गमन करवाने वखते शुन्नाशुल फळना विषयमां जोवामां श्रावे . आबे प्रकारनां शकुनोना विषयमा संहेपथी आ प्रकरणमा लखवामां आवशे. तेमांथी पहेला प्रकारनां शकुनोना विषयमां गर्गाचार्य मुनिए संस्कृतमां बनावेली पाशशकुनावलिनो अनुवाद करीने वर्णन करवामां आवशे अने तेनी पी परदेश आदि जवाना विषयमांशुलाशुप्न शकुनोनुं संदेपथी वर्णन करवामां आवशे. जे कांइ कार्य करवानुं होय तेनो प्रथम स्थिर मनश्री विचार करवो. पनी थोमा चोखा, एक सोपारी अने बेबानी के रूपानाणुं विगेरेने पुस्तकनी उपर लेट तरीके राखीने पासाने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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