Book Title: Shakun Shastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 59
________________ षष्ठः प्रस्तावः। खीला रंगनां वादळां जोवामां श्रावे तो जाणवु के ते वर्षमा सास रंगनी वस्तुऊनी किमतमां घटामो थशे. संध्याकाळे चंपर्नु बिंब जो दक्षिण दिशा तरफ वधारे चमतुं मालुम पड़े तो जाणवू के ते वर्षमां खजुर आदिक मिष्ट फळोनी किमतमां घणो घटामो थशे. संध्याकाळे चंजनुं बिंब अत्यंत तेजस्वी ने उत्तर दिशा तरफ वधारे चमतुं जो मालुम पड़े तो जाणवू ते वर्षमा अनाजना लावो मध्यमसरना रहेशे. संध्याकाळे चंजनुं बिन कांखा आकाशना रंग सरखं जो मालुम पझे तो जाणवु के ते वर्षमा शिशिर ऋतुमा घणी मी अने हिम पम्शे अने तेथी ते शतुमां थता पाकनो विनाश थशे. संध्याकाळे चंजन बिंब जो श्याम रंगनां वादळांथी ढंकाइ रहेडं होय अने ठेक अस्तसमयेज जो दीगमां आवे तो जाणवू के ते वर्षमां घृत श्रादिक रसनी वस्तुनी किमत घणी वृद्धि पामशे, केमके हरिजन सूरि महाराज पण पोताना व्यवहारकटपमां कहे के: चैत्रशुक्ल द्वितीयायां, संध्याकाले जवेद्यदि ॥ मेधै उन्नो निशानाथः श्यामरागोपरं जितैः ॥१॥ अस्तकाले पुनदृष्टि, पथं यद्येति देहिनां ॥ मूल्यं घृतादिवस्तूनां, तदब्दे वर्धते तदा ॥२॥ अर्थ-चैत्र सुदि बीजने दिवसे संध्याकाळे चंड जो श्याम रंगनां वादळांथी ढंकायेलो होय अने अस्तसमये जो फरीने प्राणीउनी दृष्टिए पझे तो जाणवु के ते वर्षमां घृत श्रादिक रसनी वस्तुनी किमतमा वृद्धि थशे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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