________________
प्रस्तावना
युक्त्यनुशासनका निम्न पद्य उद्धृत किया गया है
१. "अनथिका साधनसाध्यधीश्चेद्विज्ञानमात्रस्य न हेतुसिद्धिः । अथार्थवत्त्वं व्यभिचारदोषो न योगिगम्यं परवादिसिद्धम् ॥"'
[युक्त्यनु० ३लो. १८] [ख] चार्वाकशासनमें चार्वाकाभिमत सिद्धान्तोंका खण्डन करनेके बाद युक्त्यनुशासनके निम्नलिखित तीन पद्य उद्धृत है
"मद्याङ्गवद्भूतसमागमे ज्ञः शक्त्यन्तरव्यक्तिरदेवसृष्टिः । इत्यात्मशिश्नोदरपुष्टितुष्टेनिहींमय मृदवाः प्रलब्धाः ।। दृष्टे विशिष्ट जननादिहेतो विशिष्टता का प्रति सत्त्वमेषाम ।
स्वभावतः किं न परस्य सिद्धिरतावकानामपि हा प्रपातः ।। ४. स्वच्छन्दवृत्तेजगतः स्वभावादुच्चैरनाचारपदेष्वदोषम् ।
__ निघुप्य दीक्षा सममुक्तिमानास्त्वदृष्टिबाह्या: वत् विभ्रमन्ति ॥"" [ग] बौद्धशासन-परीक्षामें स्वलक्षणके विवेचन प्रसंगमें युक्त्यनुशासनका निम्न पद्य आया है
५. "अवाच्यमित्यत्र च वाच्यभावादवाच्यमेवेत्य यथाप्रतिज्ञम् । स्वरूपतश्चेत् पररूपवाचि स्वरूपवाचीति वचो विरुद्धम् ॥
[ युक्त्यनु० श्लो० २९ ] इसी परीक्षाके एक अन्य प्रसंगमें अविसंवादी ज्ञानकी प्रमाणताका निरसन करते हुए निम्न पद्य आया है
६. “प्रत्यक्षबुद्धिः क्रमते न यत्र तल्लिङ्गगम्यं न तदर्थलिङ्गम् । वाचो न वा तद्विषयेण योगः का तदगतिः कष्टमशृण्वतां ते॥""
[युक्त्यनु० श्लो० २२] [घ] वैशेषिकशासन-परीक्षामें समवाय सम्बन्धके विषयमें विचार करते समय युक्त्यनुशासनका निम्न पद्य दो बार उद्धृत किया गया है
७. "अभेदभेदात्मकमर्थतत्त्वं तव स्वतन्त्रान्यतरत्खपुष्पम् । अवृत्तिमत्त्वात् समवायवृत्तेस्संसर्गहानेः सकलार्थहानिः॥""
[ युक्त्यनु० श्लो० ७ ] [४] न्यायविनिश्चय और सत्यशासन-परीक्षा
न्यायविनिश्चय जैन न्यायके प्रस्थापक आचार्य भट्ट अकलंकको कृति है। धर्मकीतिके प्रमाणवातिककी तरह इस ग्रन्थको रचना गद्य-पद्यमें की गयी थी; किन्तु पूरा ग्रन्य अभीतक उपलब्ध नहीं हुआ। पद्य भागपर वादिराजकी न्यायविनिश्चयविवरण नामक टीका है; उसी टीकामें से पद्योंका संकलन करके पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यने इसका सम्पादन किया था।
विद्यानन्दिने अकलंकके सभी शास्त्रोंका अन्तःप्रविष्ट अध्ययन किया था तथा अपने साहित्यका उपजीव्य भी उन्हें बनाया; इसलिए विद्यानन्दिके ग्रन्थोंपर अकलंकके शास्त्रोंकी छाप अस्वाभाविक नहीं है।
१. सत्य विज्ञान.६११ २. सत्य. चार्वाक. १९ ३. सत्य. बौद्ध० ४१ ४. वही: $१७ ५. सत्य० वैशे०६ १८, २५ ६. मारतोय ज्ञानपीठ, काशी-द्वारा प्रकाशित ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org