________________
पृथ्वी पर जल एक महत्वपूर्ण तत्व है। जल से ही जीवन है। प्राणी हो, या वनस्पतियां, कोई भी जल के बिना जीवित नहीं रह सकते। पर्यावरण की गर्म वायु ठंडी हो कर तरल रूप में परिणत हो जाती है और निस्संदेह उसी से बादल बनते हैं और इन बादलों से जल मिलता है, वर्षा होती है, जिससे नदियों, झीलों तथा समुद्र में जल संचित होता है। जल में भी एक अंश ऑक्सीजन (प्राण वायु) का होता है। जल ठंडा हो कर ठोस रूप लेता है और बर्फ बनती है। जल का गर्म (तेजस्) रूप वाष्प बनती है जो गैस (वायु) का रूप ले लेती है। यद्यपि अग्नि तथा जल दो परस्पर विरोधी तत्व हैं, तथापि जल उबालने पर (अग्नि का संयोग पा कर) वह शुद्ध हो जाता है। शुद्ध जल के कई सात्विक गुण हैं। कोई भी संकल्प करते समय जल और अग्नि को साक्षी (गवाह) बनाते हैं। जल हमारे जीवन में नव चैतन्य का संचार करता है। 'शब्द, स्पर्श और रूप' के अतिरिक्त जल में रस (स्वाद) रूपी तत्व है। यह (रस) एक महत्वपूर्ण लक्षण है। पृथ्वी का, जल और भूमि के रूप में, उचित विभाजन हुआ है। जिस दिन यह समीकरण परिवर्तित होगा, अर्थात् पानी की मात्रा बढ़ जाएगी, संपूर्ण भूमि जल मग्न हो जाएगी और विश्व का विनाश हो जाएगा। सहस्रों वर्षों के पश्चात् सूर्य पर उपद्रव (टकराव) घटित होते हैं। उस कारण प्रचंड गर्मी पड़ती है। सभी बर्फाच्छादित पर्वत पिघल जाते हैं और घनघोर वर्षा होती है। भयंकर बाढ़ से सर्वस्व नष्ट हो जाता है। इसी महाजल से पुनः वाष्प बनती है और पृथ्वी पुनः दृष्टिगोचर होती है तथा पुनः नयी जीव सृष्टि होती है। घर में जल स्थान शुद्ध दिशा में होना चाहिए। पानी का नल, जल संग्रह एवं छत की टंकी सही होनी चाहिएं। सेप्टिक टैंक एवं प्राकृतिक वर्षा जल का निष्कासन सही होने चाहिएं। 5. पृथ्वी (भूमि) : लाखों वर्ष पूर्व सूर्य के वर्तुलाकार (घूमते हुए) कक्ष से कुछ ग्रह बाहर निकल गये थे। इनसे नव ग्रहों तथा अन्य उपग्रहों का निर्माण हुआ। ये सभी ग्रह और उपग्रह, आपसी आकर्षण के कारण, सूर्य के चारों ओर अपने-अपने विशेष ग्रह पथों में भ्रमण करने लगे। कुछ समय पश्चात सूर्य से तृतीय स्थान पर स्थित पृथ्वी ज्यों ही सूर्य से दूर हटी, वह ठंडी पड़ने लगी। उससे प्रस्फुटित (निकलने वाली) ज्वालामुखी से पर्वत और घाटियों का निर्माण हुआ। पृथ्वी के गर्भ में निश्चित स्थान पर दक्षिण-उत्तर में स्थित चुंबक तथा पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी पृथ्वी के सभी सजीव और निर्जीव पदार्थों पर अपना प्रभाव रखती हैं। अतः पृथ्वी का विशेष महत्व है। पृथ्वी तथा अन्य तत्वों से जीवनक्रम आरंभ हुआ। इसी लिए पृथ्वी को माता कहते हैं। भवन निर्माण करते
http://www.Apnihindi.com