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वर्णानुसार भूमि परीक्षा : वर्ण : श्वेत मृत्तिका (मिट्टी) की भूमि ब्राह्मणी, रक्त वर्ण की क्षत्रिया, हरित वर्ण पीली वैश्या
और कृष्ण वर्ण की भूमि शूद्रा कही जाती है। गंध :धी के समान सुगंधा भूमि ब्राह्मण, रक्तगंधा क्षत्रिया, मधु (अन्न) गंधा वैश्या और मद्यगंधा या विष्टा जैसी गंध वाली भूमि को शूद्रा कहते हैं। स्वाद : इष्ट भूमि की धूल को जिह्वा पर रखें। मधु रसयुक्त ब्राह्मणी, कषाय रसयुक्त भूमि क्षत्रिया, आम्ल रसयुक्त वैश्या और कषाय रसयुक्त भूमि शूद्रा भी कहलाती है। तृण परीक्षा : जिस भूमि पर कुश, दर्भ एवं हवनीय वृक्ष हों, वह ब्राह्मणी, शर (मुज), रक्तवर्णीय पुष्प और वृक्षों वाली, सर्प से युक्त भूमि क्षत्रिया, कुश-काश, धन-धान्य और फलयुक्त वृक्षों वाली भूमि वैश्या तथा सर्वतृणयुक्त निम्न कोटि के राक्षस वृक्षों वाली भूमि शूद्रा कहलाती है। भूमि का प्रभावः ब्राह्मणी भूमि सर्वप्रकार के आध्यात्मिक सुख देती है। क्षत्रिया राज्य देती है; वर्चस्व और पराक्रम बढ़ाती है। वैश्या धन-धान्य से युक्त करती है, ऐश्वर्य बढ़ाती है और शूद्रा निंदित है, क्योंकि यह भूस्वामी को कलह-झंझट और झगड़ों में उलझाती है। यह भी शास्त्र का वचन है कि ब्राह्मणादि चारों वर्गों के लिए, क्रम से, धृतगंधा, रक्तगंधा, अन्नगंधा और मद्यगंधा भूमि शुभ होती हैं। भूमि कोई भी रंग की हो, परंतु कुछ कठोर और स्निग्ध (चिकनी) हो, तो उत्तम होती है। । भूमि परीक्षा की दूसरी विधिः पूर्वकथित प्रकार से गड्ढे को खोदें। बाद में उसमें जल भर कर, वहां से सौ पद तक जा कर वापस लौट आएं। इतने समय में गड्ढे का जल ज्यों का त्यों बना रहे, तो शुभ होता
ढलान के अनुसार भूमि की परीक्षाः उत्तरी तरफ ढाल वाली भूमि ब्राह्मणों को, पूर्व की ओर ढाल वाली भूमि क्षत्रियों को, दक्षिण की ओर ढाल वाली भूमि वैश्यों को और पश्चिम की ओर ढाल वाली भूमि शूद्रों के लिए शुभ होती है। ब्राह्मण चारों ओर की ढालू भूमि में घर बना सकता है। शेष वर्गों के लिए अपनी-अपनी दिशा की ढालू वाली भूमि पर ही घर बनाना उत्तम रहता है।
जल से भरा गड्ढा
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