Book Title: Sanmati Mahavira
Author(s): Sureshmuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ गृहस्थ जीवन में प्रवेश सन्मति महावीर बाल्यकाल से ही चिन्तनशील और गंभोर प्रकृति को साकार मूर्ति थे। वे अपने चारो ओर की स्थितिपरिस्थिति एवं वातावरण पर बडी गम्भीरता से चिन्तन-मनन करते और घएटो ही उस चिन्तनिका मे डूबते-उतराते रहते थे। वे विचारते कि-"धर्म के नाम पर कितना अन्धकार फैलाया जा रहा है। आज का धर्माधिकारी ब्राह्मण तथा श्रमण केवल पोथियों के ज्ञान में ही बन्द हो गया है! ज्ञान जब सत्कर्म से शून्य हो जाता है, तो वह प्रकाश की अपेक्षा अन्धकार ही अधिक पकने लगता है। कर्म का अर्थ सदाचार तथा नैतिक जीवन भुला दिया गया है और उसके नाम पर केवल अर्थशन्य, शुष्क एवं बड़ नियाकांड जनता के मत्थे मढ़ा जा रहा है। जनता भी

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47