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भोग में मन न रम सका
महाबोर राजकुमार थे । ससार का सुख-वैभव और भोगविलास की सामग्री उनके चारों ओर बिखरी पडी थी । मातापिता का वात्सल्य स्नेह अर्पण कर रहा था। बड़े भाई नन्दीवर्धन का अप्रतिम भ्रातृत्व आदर्श का प्रतीक बना हुआ था। दास-दासी सेवा में हाथ जोडे तत्पर रहते थे। पत्नी के रूप मे यशोदा चरण-चेरी बनी हुई थी। दुःख, अभाव, कष्ट क्या होता है-स्वप्न मे भी कही पता न था । एक ओर था समृद्ध परिवार का विलासमय जीवन और दूसरी ओर थी महावीर की वैराग्यपूर्ण वृत्ति प्रवृत्ति । विलासमय वातावरण उनको चिन्ताशील प्रवृत्ति को न बदल सका । भोग की भरी-पूरी दुनिया के बीच रहकर भी महावीर की आत्मा एक तरह की तृप्ति