Book Title: Sanmati Mahavira
Author(s): Sureshmuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 17
________________ मानवता की एक झलक : ३६ आपकी साधना जादूगर बनने के लिये नहीं है, यह सर्वथा अन्य है। परन्तु, क्या मै कल्प-वृक्ष को पाकर भी खाली हाथ लौटू ? आपके हाथ से कुछ भी चीज मुझे मिलनी ही चाहिये। मुझे आशा ही नहीं, प्रत्युत पूर्ण विश्वास है कि आपके हाथ की मिली हुई धूल भी मेरे भाग्य का वारान्यारा कर देगी, मेरे भाग्य की गति बदल देगी।" __ ब्राह्मण फिर रोने लगा। अब की बार उसकी आंखो के ऑसू करुणामूर्ति से न देखे गये । मानवता का सबसे बडा श्रद्धालु पुजारी, भला दुखी को देखकर कैसे चुप रह सकता था ? मानवता की साकार मूर्ति महावीर ने करुणाई होकर देव-दुष्य उतारा, और उसका आधा भाग ब्राह्मण को दे दिया। महावीर का फिर वही आत्म-मन्थन चल पड़ा।

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